5 Sept 2008

छोटे भाई कुलतार सिंह के नाम भगतसिंह के अंतिम पत्र से...

उसे यह फ़ि‍क्र है हरदम नया तर्जे़-जफ़ा क्‍या है,
हमें यह शौक़ है देखें सितम की इन्‍तहाँ क्‍या है।

दहर से क्‍यों ख्‍़ाफ़ा रहें, चर्ख़ का क्यों गिला करें,
सारा जहाँ अदू सही, आओ मुक़ाबला करें।

कोई दम का मेहमॉं हूँ ऐ अहले-महफ़ि‍ल,
चराग़े-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ।

हवा में रहेगी मेरे ख्‍़ायाल की बिजली,
ये मुश्‍ते-ख़ाक़ है फानी, रहे रहे न रहे।

4 comments:

विवेक सिंह said...

बेहतरीन !

डॉ .अनुराग said...

पहले पढ़ा था इसे बया के एक अंक में ........शुक्रिया इसे यहाँ बांटने के लिए ओर तहे दिल से शुक्रिया इन फोटो को यहाँ लगाने के लिए ....

त्रिभुवन said...
This comment has been removed by the author.
त्रिभुवन said...

भगत सिंह की देशभक्ति को सलाम्……………
मेरे जैसे उनपर क्या कमेन्ट लिखेंगें…………पर आपको
धन्यवाद जो उनका सन्देश हम लोगों तक पहुंचाया