शहीदे आज़म भगतसिंह के 101वें जन्मदिवस के अवसर पर दिशा छात्र संगठन, नौजवान भारत सभा, बिगुल मज़दूर दस्ता और नारी सभा ने आज दिल्ली के जन्तर मन्तर के पास एक विशाल जनसभा और सांस्कृतिक कार्यक्रम के जरिये भगतसिंह को याद किया और उनके सपनों को पूरा करने के लिए लड़ाई जारी रखने का संकल्प लिया। इस मौके पर क्रान्तिकारियों के जीवन और विचारों पर एक कलात्मक पोस्टर प्रदर्शनी और पुस्तक प्रदर्शनी भी लगाई गई थी।
उपरोक्त संगठनों के अलावा जागरूक नागरिक मंच और बादाम मज़दूर दस्ता के कार्यकर्ताओं सहित दिल्ली विश्वविद्यालय, नोएडा, गाजियाबाद, करावलनगर, झिलमिल इंडस्ट्रियल एरिया, बवाना-नरेला इंडस्ट्रियल एरिया, तुगलकाबाद, रोहिणी आदि दिल्ली और आसपास के इलाकों से बड़ी संख्या छात्र-नौजवान, मजदूर, महिलाएं और सामाजिक तथा सांस्कृतिककर्मी इस कार्यक्रम में शामिल हुए।
23 मार्च, 2005 को भगतसिंह और उनके साथियों के 75वें शहादत वर्ष के आरम्भ पर शुरू की गयी स्मृति संकल्प यात्रा के तहत ये संगठन पिछले तीन वर्षों से भगतसिंह के उस सन्देश पर अमल कर रहे हैं जो उन्होंने जेल की कालकोठरी से नौजवानों को दिया था कि - छात्रों और नौजवानों को क्रान्ति की अलख लेकर गांवों-कस्बों, कारखानों-दफ्तरों, झुग्गी बस्तियों तक जाना होगा।
पिछले 21 सितम्बर से इन सभी संगठनों की ओर से दिल्ली तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के साथ ही पंजाब में लुधियाना, चंडीगढ़, जालंधर आदि और गोरखपुर तथा लखनऊ में भगतसिंह स्मृति सप्ताह मनाया जा रहा था, जिसका समापन आज हुआ।
दिशा छात्र संगठन के अभिनव ने जनसभा को सम्बोधित करते हुए सवाल उठाया कि बर्तानवी गुलामी से आजादी के साठ वर्षों बाद देश आज कहां पहुंचा है? आंसुओं के सागर में समृद्धि के कुछ द्वीप, गरीबी, अभाव और यन्त्रणा के रेगिस्तान में विलासिता की कुछ मीनारें, ऊंची विकास-दर के शोर के बीच अकूत सम्पदा की ढेरी पर बैठे मुट्ठीभर परजीवी और दूसरी ओर शिक्षा और सुविधा तो दूर, बारह-चौदह घंटों तक हड्डियां गलाने के बावजूद दो जून की रोटी भी मुश्किल से जुटा पाने वाली 40 करोड़ आबादी, 20 करोड़ बेरोजगार युवा, करोड़ों भुखमरी के शिकार बच्चे, शरीर बेचने को बेबस लाखों स्त्रियां; दंगों और धार्मिक कट्टरपन्थ की फासिस्ट राजनीति, जाति के आधार पर आम मेहनतकश जनता को बांटने की साजिशें - यही है इक्कीसवीं सदी के चमकते चेहरे वाले भारत की तस्वीर। जाहिर है कि इस सड़े-गले ढांचे को मिट्टी में मिलाकर ही जनमुक्ति का स्वप्न साकार किया जा सकता है और एक नये भारत का निर्माण किया जा सकता है।
प्रसिद्ध कवयित्री कात्यायनी ने भारत और पूरे विश्व के बिगड़ते परिदृश्य का एक विहंगम दृश्यावलोकन प्रस्तुत किया। आज भगतसिंह को याद करने का एक ही मतलब है कि हम उनकी बताई हुई राह पर आगे बढ़े और उनके सपनों का हिन्दुस्तान बनाने के लिए एक लम्बी लड़ाई की तैयारियों में जुट जाएं। बड़ी संख्या में मेहनतकश औरतों और छात्राओं का विशेष रूप से आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि आजादी की लड़ाई से लेकर दुनियाभर में हुई क्रान्तियों का इतिहास इस बात का गवाह है कि आधी आबादी की शिरकत के बिना कोई भी सामाजिक बदलाव नहीं हो सकता।
जागरूक नागरिक मंच के सत्यम ने कहा कि यह वह भारत तो नहीं है जिसका सपना भगतसिंह ने देखा था। उन्होंने कहा कि भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेम्बली में जो बम फेंका था, वह मजदूरों के अधिकारों को और कम करने के लिए लाए गए ट्रेड डिस्प्यूट बिल और पब्लिक सेफ्टी बिल के विरोध में फेंका था। भगतसिंह ने बार-बार कहा था कि अगर आजादी के बाद गोरे अंग्रेजों की जगह काले अंग्रेज आ गए तो देश के किसानों-मजदूरों के लिए आजादी का कोई मतलब नहीं होगा। उन्होंने भगतसिंह के अधूरे सपने की याद दिलाई और नौजवानों से पूंजीवाद-साम्राज्यवाद विरोधी नई जनक्रान्ति की तैयारियों में जुट जाने का आह्वान किया।
नौजवान भारत सभा के योगेश ने देशभर में हुई स्मृति संकल्प यात्राओं के दौरान हुए अनुभवों को साझा किया और बताया कि इस दौरान हम नये जनमुक्ति संघर्ष की तैयारी के संकल्प और सन्देश को देश के कोने-कोने में पहुंचाते रहे।
बिगुल मजदूर दस्ता के प्रसेन ने, जो नरेला-बवाना की मजदूर बस्तियों में काम करते हैं, मजदूरों की समस्याओं और उनके जीवन के नारकीय हालात की तस्वीर पेश करते हुए कहा कि भगतसिंह के बताए रास्ते पर चलकर ही ऐसा समाज बनाया जा सकता है जिसमें हर मेहनतकश को बराबरी और इज्जत की जिन्दगी हासिल हो सकेगी।
बादाम मजदूर यूनियन के आशीष ने करावलनगर के बादाम मजदूरों के जीवन और संघर्षों की चर्चा करते हुए कहा कि मजदूरों ने अपने अनुभवों से खुद यह सीखा है कि इस पूंजीवादी व्यवस्था के भीतर उन्हें न्याय नहीं मिल सकता। पारम्परिक ट्रेड यूनियन आन्दोलन की सीमाएं और उसमें छाए हुए अवसरवादी और मौकापरस्त नेताओं की कारगुजारियां भी उनके सामने साफ हो चुकी हैं और उन्होंने यह समझ लिया है कि मजदूर आन्दोलन को एक क्रान्तिकारी मोड़ दिये बिना शहीदों के सपनों का भारत नहीं बनाया जा सकता! दिशा छात्र संगठन की शिवानी ने न सिर्फ छात्रों की समस्याओं को रखा बल्कि उन्होंने नौजवानों और छात्रों का मजदूरों के बीच जाकर काम करने का आह्वान भी किया। उन्होंने कहा कि मजदूरों, छात्रों, महिलाओं को अलग-अलग होकर नहीं बल्कि एकजुट होकर लड़ना होगा।
नारी सभा की मीनाक्षी ने कहा कि आज जब साम्प्रदायिक ताकतें भावनाएं भड़काकर लोगों को एक-दूसरे से लड़ाने में लगी हुई हैं तो भगतसिंह के विचार और भी प्रासंगिक हो गये हैं। उन्होंने कहा था कि लोगों को आपस में लड़ने से रोकने के लिए वर्ग चेतना की जरूरत होती है।
नौजवान भारत सभा, गाजियाबाद के तपीश मेंदोला ने कहा कि भगतसिंह का जीवन और उनके विचार एक जलती हुई मशाल की तरह हमें रास्ता दिखा रहे हैं। भगतसिंह के विचारों पर अमल करते हुए हिन्दुस्तान की व्यापक मेहनतकश आबादी की मुक्ति के लिए नौजवानों को आगे आना होगा।
बीच-बीच में विहान सांस्कृतिक मंच की टोली ने क्रान्तिकारी गीत प्रस्तुत किए। इंकलाब जिन्दाबाद, मजदूर एकता जिन्दाबाद, भगतसिंह का सपना आज भी अधूरा, मेहनतकश और नौजवान उसे करेंगे पूरा, नौजवान जब भी जागा इतिहास ने करवट बदली है, इसी सदी में नए वेग से परिवर्तन का ज्वार उठेगा... आदि नारों से लगभग चार घंटे चलने वाली इस जनसभा का पूरा माहौल गरमाया रहा। कार्यक्रम का संचालन दिशा छात्र संगठन के शिवार्थ ने किया।
जन्तर मन्तर पर चल रहे विभिन्न संगठनों के धरना-प्रदर्शनों में आए लोगों और वहां से गुजर रहे राहगीरों ने भी बड़ी संख्या में क्रान्तिकारियों के विचारों पर आधारित प्रदर्शनी को देखा और उनकी पुस्तकें और परचे लिए।