28 Sept 2008

स्‍मृति संकल्‍प यात्रा के तहत भगतसिंह के जन्‍मशताब्‍दी वर्ष के समापन पर जन्‍तर मन्‍तर पर एक विशाल जनसभा का आयोजन








शहीदे आज़म भगतसिंह के 101वें जन्‍मदिवस के अवसर पर दिशा छात्र संगठन, नौजवान भारत सभा, बिगुल मज़दूर दस्‍ता और नारी सभा ने आज दिल्‍ली के जन्‍तर मन्‍तर के पास एक विशाल जनसभा और सांस्‍कृतिक कार्यक्रम के जरिये भगतसिंह को याद किया और उनके सपनों को पूरा करने के लिए लड़ाई जारी रखने का संकल्‍प लिया। इस मौके पर क्रान्तिकारियों के जीवन और विचारों पर एक कलात्‍मक पोस्‍टर प्रदर्शनी और पुस्‍तक प्रदर्शनी भी लगाई गई थी।

उपरोक्‍त संगठनों के अलावा जागरूक नागरिक मंच और बादाम मज़दूर दस्‍ता के कार्यकर्ताओं सहित दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय, नोएडा, गाजियाबाद, करावलनगर, झिलमिल इंडस्ट्रियल एरिया, बवाना-नरेला इंडस्ट्रियल एरिया, तुगलकाबाद, रोहिणी आदि दिल्‍ली और आसपास के इलाकों से बड़ी संख्‍या छात्र-नौजवान, मजदूर, महिलाएं और सामाजिक तथा सांस्‍कृतिककर्मी इस कार्यक्रम में शामिल हुए।

23 मार्च, 2005 को भगतसिंह और उनके सा‍थियों के 75वें शहादत वर्ष के आरम्‍भ पर शुरू की गयी स्‍मृति संकल्‍प यात्रा के तहत ये संगठन पिछले तीन वर्षों से भगतसिंह के उस सन्‍देश पर अमल कर रहे हैं जो उन्‍होंने जेल की कालकोठरी से नौजवानों को दिया था कि - छात्रों और नौजवानों को क्रान्ति की अलख लेकर गांवों-कस्‍बों, कारखानों-दफ्तरों, झुग्‍गी बस्तियों तक जाना होगा।

पिछले 21 सितम्‍बर से इन सभी संगठनों की ओर से दिल्‍ली तथा राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र के साथ ही पंजाब में लुधियाना, चंडीगढ़, जालंधर आदि और गोरखपुर तथा लखनऊ में भगतसिंह स्‍मृति सप्‍ताह मनाया जा रहा था, जिसका समापन आज हुआ।

दिशा छात्र संगठन के अभिनव ने जनसभा को सम्‍बोधित करते हुए सवाल उठाया कि बर्तानवी गुलामी से आजादी के साठ वर्षों बाद देश आज कहां पहुंचा है? आंसुओं के सागर में समृद्धि के कुछ द्वीप, गरीबी, अभाव और यन्‍त्रणा के रेगिस्‍तान में विलासिता की कुछ मीनारें, ऊंची विकास-दर के शोर के बीच अकूत सम्‍पदा की ढेरी पर बैठे मुट्ठीभर परजीवी और दूसरी ओर शिक्षा और सुविधा तो दूर, बारह-चौदह घंटों तक हड्डियां गलाने के बावजूद दो जून की रोटी भी मुश्किल से जुटा पाने वाली 40 करोड़ आबादी, 20 करोड़ बेरोजगार युवा, करोड़ों भुखमरी के शिकार बच्‍चे, शरीर बेचने को बेबस लाखों स्त्रियां; दंगों और धार्मिक कट्टरपन्‍थ की फासिस्‍ट राजनीति, जाति के आधार पर आम मेहनतकश जनता को बांटने की साजिशें - यही है इक्‍कीसवीं सदी के चमकते चेहरे वाले भारत की तस्‍वीर। जाहिर है कि इस सड़े-गले ढांचे को मिट्टी में मिलाकर ही जनमुक्ति का स्‍वप्‍न साकार किया जा सकता है और एक नये भारत का निर्माण किया जा सकता है।

प्रसिद्ध कव‍यित्री कात्‍यायनी ने भारत और पूरे विश्‍व के बिगड़ते परिदृश्‍य का एक विहंगम दृश्‍यावलोकन प्रस्‍तुत किया। आज भगतसिंह को याद करने का एक ही मतलब है कि हम उनकी बताई हुई राह पर आगे बढ़े और उनके सपनों का हिन्‍दुस्‍तान बनाने के लिए एक लम्‍बी लड़ाई की तैयारियों में जुट जाएं। बड़ी संख्‍या में मेहनतकश औरतों और छात्राओं का विशेष रूप से आह्वान करते हुए उन्‍होंने कहा कि आजादी की लड़ाई से लेकर दुनियाभर में हुई क्रान्तियों का इतिहास इस बात का गवाह है कि आधी आबादी की शिरकत के बिना कोई भी सामाजिक बदलाव नहीं हो सकता।

जागरूक नागरिक मंच के सत्‍यम ने कहा कि यह वह भारत तो नहीं है जिसका सपना भगतसिंह ने देखा था। उन्‍होंने कहा कि भगतसिंह और बटुकेश्‍वर दत्त ने असेम्‍बली में जो बम फेंका था, वह मजदूरों के अधिकारों को और कम करने के लिए लाए गए ट्रेड डिस्‍प्‍यूट बिल और पब्लिक सेफ्टी बिल के विरोध में फेंका था। भगतसिंह ने बार-बार कहा था कि अगर आजादी के बाद गोरे अंग्रेजों की जगह काले अंग्रेज आ गए तो देश के किसानों-मजदूरों के लिए आजादी का कोई मतलब नहीं होगा। उन्‍होंने भगतसिंह के अधूरे सपने की याद दिलाई और नौजवानों से पूंजीवाद-साम्राज्‍यवाद विरोधी नई जनक्रान्ति की तैयारियों में जुट जाने का आह्वान किया।

नौजवान भारत सभा के योगेश ने देशभर में हुई स्‍मृति संकल्‍प यात्राओं के दौरान हुए अनुभवों को साझा किया और बताया कि इस दौरान हम नये जनमुक्ति संघर्ष की तैयारी के संकल्‍प और सन्‍देश को देश के कोने-कोने में पहुंचाते रहे।

बिगुल मजदूर दस्‍ता के प्रसेन ने, जो नरेला-बवाना की मजदूर बस्तियों में काम करते हैं, मजदूरों की समस्‍याओं और उनके जीवन के नारकीय हालात की तस्‍वीर पेश करते हुए कहा कि भगतसिंह के बताए रास्‍ते पर चलकर ही ऐसा समाज बनाया जा सकता है जिसमें हर मेहनतकश को बराबरी और इज्‍जत की जिन्‍दगी हासिल हो सकेगी।

बादाम मजदूर यूनियन के आशीष ने करावलनगर के बादाम मजदूरों के जीवन और संघर्षों की चर्चा करते हुए कहा कि मजदूरों ने अपने अनुभवों से खुद यह सीखा है कि इस पूंजीवादी व्‍यवस्‍था के भीतर उन्‍हें न्‍याय नहीं मिल सकता। पारम्‍परिक ट्रेड यूनियन आन्‍दोलन की सीमाएं और उसमें छाए हुए अवसरवादी और मौकापरस्‍त नेताओं की कारगुजारियां भी उनके सामने साफ हो चुकी हैं और उन्‍होंने यह समझ लिया है कि मजदूर आन्‍दोलन को एक क्रान्तिकारी मोड़ दिये बिना शहीदों के सपनों का भारत नहीं बनाया जा सकता! दिशा छात्र संगठन की शिवानी ने न सिर्फ छात्रों की समस्‍याओं को रखा बल्कि उन्‍होंने नौजवानों और छात्रों का मजदूरों के बीच जाकर काम करने का आह्वान भी किया। उन्‍होंने कहा कि मजदूरों, छात्रों, महिलाओं को अलग-अलग होकर नहीं बल्कि एकजुट होकर लड़ना होगा।

नारी सभा की मीनाक्षी ने कहा कि आज जब साम्‍प्रदायिक ताकतें भावनाएं भड़काकर लोगों को एक-दूसरे से लड़ाने में लगी हुई हैं तो भगतसिंह के विचार और भी प्रासंगिक हो गये हैं। उन्‍होंने कहा था कि लोगों को आपस में लड़ने से रोकने के लिए वर्ग चेतना की जरूरत होती है।

नौजवान भारत सभा, गाजियाबाद के तपीश मेंदोला ने कहा कि भगतसिंह का जीवन और उनके विचार एक जलती हुई मशाल की तरह हमें रास्‍ता दिखा रहे हैं। भगतसिंह के विचारों पर अमल करते हुए हिन्‍दुस्‍तान की व्‍यापक मेहनतकश आबादी की मुक्ति के लिए नौजवानों को आगे आना होगा।

बीच-बीच में विहान सांस्‍कृतिक मंच की टोली ने क्रान्तिकारी गीत प्रस्‍तुत किए। इंकलाब जिन्‍दाबाद, मजदूर एकता जिन्‍दाबाद, भगतसिंह का सपना आज भी अधूरा, मेहनतकश और नौजवान उसे करेंगे पूरा, नौजवान जब भी जागा इतिहास ने करवट बदली है, इसी सदी में नए वेग से परिवर्तन का ज्‍वार उठेगा... आदि नारों से लगभग चार घंटे चलने वाली इस जनसभा का पूरा माहौल गरमाया रहा। कार्यक्रम का संचालन दिशा छात्र संगठन के शिवार्थ ने किया।

जन्‍तर मन्‍तर पर चल रहे विभिन्‍न संगठनों के धरना-प्रदर्शनों में आए लोगों और वहां से गुजर रहे राहगीरों ने भी बड़ी संख्‍या में क्रान्तिकारियों के विचारों पर आधारित प्रदर्शनी को देखा और उनकी पुस्‍तकें और परचे लिए।



26 Sept 2008

भगतसिंह ने कहा... 'कानून की पवित्रता के बारे में...'

कानून की पवित्रता तभी तक रखी जा सकती है जब तक वह जनता के दिल यानी भावनाओं को प्रकट करता है। जब यह शोषणकारी समूह के हाथों में एक पुर्जा बन जाता है तब अपनी पवित्रता और महत्‍व खो बैठता है। न्‍याय प्रदान करने के लिए मूल बात यह है कि हर तरह के लाभ या हित का खात्‍मा होना चाहिए। ज्‍यों ही कानून सामाजिक आवश्‍यकताओं को पूरा करना बन्‍द कर देता है त्‍यों ही जुल्‍म और अन्‍याय को बढ़ाने का हथियार बन जाता है। ऐसे कानूनों को जारी रखना सामूहिक हितों पर विशेष हितों की दम्‍भपूर्ण जबरदस्‍ती के सिवाय कुछ नहीं है।

-- भगतसिंह के पत्र से

24 Sept 2008

स्‍म़ति संकल्‍प यात्रा के तहत पुस्‍तक विमोचन के अवसर पर आमन्‍त्रण

एस. इरफ़ान हबीब की किताब 'बहरों को सुनाने के लिए' के लोकार्पण
के अवसर पर आप सादर आमन्त्रित हैं।


किताब का लोकार्पण भारतीय इतिहास अनुसन्‍धान परषिद के अध्‍यक्ष
प्रो. सब्‍यसाची भट्टाचार्य करेंगे।



कार्यक्रम


प्रो. सब्‍यसाची भट्टाचार्य द्वारा किताब का लोकार्पण
कृष्‍णा सोबती, असद ज़ैदी, एस. इरफ़ान हबीब, सत्‍यम
द्वारा किताब पर चर्चा
त्रिवेणी कला संगम सभागार, तानसेन मार्ग, मण्‍डी हाउस, नयी दिल्‍ली
26 सितम्‍बर 2008, शाम 5:30 बजे

कात्‍यायनी

अध्‍यक्ष

राहुल फ़ाउण्‍डेशन


22 Sept 2008

आमन्‍त्रण 'भगतसिंह एक क्रान्तिकारी विचारक' व्‍याख्‍यान डा. एस. इरफ़ान हबीब दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय

शहीद भगतसिंह
के जन्‍मश‍ताब्‍दी वर्ष (28 सितम्‍बर 2007 - 28 सितम्‍बर 2008)
के अवसर पर
प्रसिद्ध इतिहासकार और लेखक
एस. इरफ़ान हबीब
के व्‍याख्‍यान
भगतसिंह एक क्रान्तिकारी विचारक
में आप सादर आमन्त्रित हैं!
23 सितम्‍बर, मंगलवार 11.30 पूर्वान्‍ह
स्‍टूडेण्‍ट्स ऐक्टिविटी सेण्‍टर, आर्ट्स फैकल्‍टी
दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय
दिशा छात्र संगठन
संपर्क : अभिनव सिन्‍हा (9999379381), शिवानी (9911055517),
श्‍वेता (9891859047), शिवार्थ (999951235)
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डा. एस. इरफ़ान हबीब नेशनल इंस्‍टीट्यूट ऑफ़ साइंस, टेक्‍नोलॉजी ऐण्‍ड डेवेलपमेण्‍ट स्‍टडीज़ (एनआईएसटीएडीएस), दिल्‍ली में कार्यरत हैं। उनकी पुस्‍तक 'बहरों को सुनाने के लिए' राष्‍ट्रवादी क्रान्तिकारियों और भारत के स्‍वतन्‍त्रता संग्राम में उनकी भूमिका पर अबतक उपलब्‍ध
सबसे बेहतरीन किताबों में मानी जाती है।
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भगतसिंह ने कहा... 'क्रान्तिकारी सिर्फ़ तर्क में विश्‍वास करते हैं...'

एक क्रान्तिकारी सबसे अधिक तर्क में विश्‍वास करता है। वह केवल तर्क और तर्क में ही विश्‍वास करता है। किसी प्रकार का गाली-गलौच या निन्‍दा, चाहे वह ऊँचे से ऊँचे स्‍तर से की गयी हो, उसे अपने निश्‍ि‍चत उद्देश्‍य-प्राप्ति से वंचित नहीं कर सकती। यह सोचना कि यदि जनता का सहयोग न मिला या उसके कार्य की प्रशंसा न की गयी तो वह अपने उद्देश्‍य को छोड़ देगा, निरी मूर्खता है। अनेक क्रान्तिकारी, जिनके कार्यों की वैधानिक आन्‍दोलनकारियों ने घोर निन्‍दा की, फिर भी वे उसकी परवाह न कर फॉंसी के तख्‍़ते पर झूल गये। यदि तुम चाहते हो कि क्रान्तिकारी अपनी गतिविधियों को स्‍थगित कर दें तो उसके लिए होना तो यह चाहिए कि उनके साथ्‍ा तर्क द्वारा अपना मत प्रमाणित किया जाये। यह एक, और केवल यही एक रास्‍ता है, और बाक़ी बातों के विषय में किसी को सन्‍देह नहीं होना चाहिए। क्रान्तिकारी इस प्रकार के डराने-धमकाने से कदापि हार मानने वाला नहीं।

-- 'बम का दर्शन' लेख से

21 Sept 2008

भगतसिंह ने कहा... 'आम भारतीय को विदेशी पूँजीपतियों के साथ ही भारतीय पूँजीपतियों के हमलों से भी ख्‍़ातरा है'

भारत साम्राज्‍यवाद के जुवे के नीचे पिस रहा है। इसमें करोड़ों लोग आज अज्ञानता और ग़रीबी के शिकार हो रहे हैं। भारत की बहुत बड़ी जनसंख्‍या जो मज़दूरों और किसानों की है, उनको विदेशी दबाव एवं आर्थिक लूट ने पस्‍त कर दिया है। भारत के मेहनतकश वर्ग की हालत आज बहुत गम्‍भीर है। उसके सामने दोहरा ख्‍़ातरा है - विदेशी पूँजीवाद के धोखे भरे हमले का दूसरी तरफ़ से और भारतीय पूँजीवाद के धोखे भरे हमले का दूसरे तरफ़ से। भारतीय पूँजीवाद विदेशी पूँजी के साथ हर रोज़ बहुत से गँठजोड़ कर रहा है।...

भारतीय पूँजीपति भारतीय लोगों को धोखा देकर विदेशी पूँजीपति से विश्‍वासघात की क़ीमत के रूप में सरकार में कुछ हिस्‍सा प्राइज़ करना चाहता है। इसी कारण मेहनतकश की तमाम आशाऍं जब सिर्फ़ समाजवाद पर दिकी हैं और सिर्फ़ यही पूर्ण स्‍वराज्‍य और सब भेदभाव ख्‍़ात्‍म करने में सहायक साबित हो सकता है। देश का भविष्‍य नौजवानों के सहारे है। वही धरती के बेटे हैं।

-- 'हिन्‍दुस्‍तान सोशलिस्‍ट रिपब्लिकन असोसिएशन' के घोषणापत्र से

19 Sept 2008

भगतसिंह ने कहा... 'अदालत एक ढकोसला है'

... हमारा यह भी विश्‍वास है कि साम्राज्‍यवाद एक बड़ी डाकेजनी की साजि़श के अलावा कुछ नहीं। साम्राज्‍यवाद मनुष्‍य के हाथों मनुष्‍य के और राष्‍ट्र के हाथों राष्‍ट्र के शोषण का चरम है। साम्राज्‍यवादी अपने हितों, और लूटने की योजनाओं को पूरा करने के लिए न सिर्फ़ न्‍यायालयों एवं कानून को कत्‍ल करते हैं, बल्कि भयंकर हत्‍याकाण्‍ड भी आयोजित करते हैं। अपने शोषण को पूरा करने के लिए जंग-जैसे ख़ौफ़नाक अपराध भी करते हैं। जहॉं कहीं लोग उनकी नादिरशाही शोषणकारी मॉंगों को स्‍वीकार न करें या चुपचाप उनकी ध्‍वस्‍त कर देनेवाली और घृणा योग्‍य साजिशों को मानने से इनकार कर दें तो यह निरपराधियों का ख़ून बहाने से संकोच नहीं करते। शान्ति-व्‍यवस्‍था की आड़ में वे शान्ति-व्‍यवस्‍था भंग करते हैं। भगदड़ मचाते हुए लोगों की हत्‍या, अर्थात हर सम्‍भव दमन करते हैं।

-- भगतसिंह

भगतसिंह ने कहा... 'ग़ुलामी की जंजीरें काटने के लिए संगठनबद्ध हो जाओ...'

उठो, अपनी शक्ति को पहचानो। संगठनबद्ध हो जाओ। असल में स्‍वयं कोशिशें किये बिना कुछ भी न मिल सकेगा। ...स्‍वतन्‍त्रता के लिए स्‍वाधीनता चाहने वालों को स्‍वयं यत्‍न करना चाहिए। इन्‍सान की धीरे-धीरे कुछ ऐसी आदतें हो गयी हैं कि वह अपने लिए तो अधिक अधिकार चाहता है, लेकिन जो उनके मातहत हैं उन्‍हें वह अपनी जूती के नीचे ही दबाये रखता चाहता है। कहावत है, 'लातों के भूत बातों से नहीं मानतेद्ध। अर्थात संगठनबद्ध हो अपने पैरों पर खड़े होकर पूरे समाज को चुनौती दे दो। तब देखना, कोई भी तुम्‍हें तुम्‍हारे अधिकार देने से इन्‍कार करने की ज़ुर्रत न कर सकेगाा तुम दूसरों की ख़ुराक़ मत बनो। दूसरों के मुँह की ओर न ताको। लेकिन ध्‍यान रहे, नौकरशाही के झॉंसे में मत फँसना। यह तुम्‍हारी कोई सहायता नहीं करना चाहती, बल्कि तुम्‍हें अपना मोहरा बनाना चाहती है। यही पूँजीवादी नौकरशाही तुम्‍हारी ग़ुलामी और ग़रीबी का असली कारण है। इसलिए तुम उसके साथ कभी न मिलना। उसकी चालों से बचना। तब सबकुछ ठीक हो जायेगा। तुम असली सर्वहारा हो...संगठनबद्ध हो जाओ। तुम्‍हारी कुछ हानि न होगी। बस ग़लामी की जंजीरें कट जायेंगी। उठो, और वर्तमान व्‍यवस्‍था के विरुद्ध बग़ावत खड़ी कर दो। धीरे-धीरे होने वाले सुधारों से कुछ नहीं बन सकेगा। सामाजिक आन्‍दोलन से क्रान्ति पैदा कर दो तथा राजनीतिक और आर्थिक क्रान्ति के लिए कमर कस लो। तुम ही तो देश का मुख्‍य आधार हो, वास्‍तविक शक्ति हो, सोये हुए! उठो, और बग़ावत खड़ी कर दो!

-- भगतसिंह (अछूत समस्‍या पर एक लेख से)

16 Sept 2008

भगतसिंह ने कहा... 'कोरा विश्‍वास और अन्‍धविश्‍वास ख्‍़ातरनाक होता है...'

प्रगति के समर्थक प्रत्‍येक व्‍यक्ति के लिए यह अनिवार्य है कि वह पुराने विश्‍वास से सम्‍बन्धित हर बात की आलोचना करे, उसमें अविश्‍वास करे और उसे चुनौती दे। प्रचलित विश्‍वास की एक-एक बात के हर कोने-अंतरे की विवेकपूर्ण जॉंच-पड़ताल उसे करनी होगी। यदि कोई विवेकपूर्ण ढंग से पर्याप्‍त सोच विचार के बाद किसी सिद्धान्‍त या दर्शन में विश्‍वास करता है तो उसके विश्‍वास का स्‍वागत है। उसकी तर्क-पद्धति भ्रान्तिपूर्ण, ग़लत, पथ-भ्रष्‍ट और कदाचित हेत्‍वाभासी हो सकती है, लेकिन ऐसा आदमी सुधर कर सही रास्‍ते पर आ सकता है, क्‍योंकि विवेक का ध्रुवतारा सही रास्‍ता बनाता हुआ उसके जीवन में चमकता रहता है। मगर कोरा विश्‍वास और अन्‍धविश्‍वास ख्‍़ातरनाक होता है। क्‍योंकि वह दिमाग़ को कुन्‍द करता है और आदमी को प्रतिक्रियावादी बना देता है।

यथार्थवादी होने का दावा करने वाले को तो समूचे पुरातन विश्‍वास को चुनौती देनी होगी। यदि विश्‍वास विवेक की ऑंच बरदाश्‍‍त नहीं कर सकता तो ध्‍वस्‍त हो जायेगा। तब यथार्थवादी आदमी को सबसे पहले उस विश्‍वास के ढॉंचे को पूरी तरह गिरा कर उस जगह एक नया दर्शन खड़ा करने के लिए ज़मीन साफ़ करनी होगी।

-- भगतसिंह ('मैं नास्तिक क्‍यों हूँ' लेख से)

क्रान्ति से हमारा अभिप्राय...

क्रान्ति से हमारा अभिप्राय है - अन्‍याय पर आधारित मौजूदा समाज-व्‍यवस्‍था में आमूल परिवर्तन।
समाज का मुख्‍य अंग होते हुए भी आज मज़दूरों को उनके प्राथमिक अधिकार से वंचित रखा जाता है और उनकी गाढ़ी कमाई का सारा धन पूँजीपति हड़प जाते हैं। दूसरों के अन्‍नदाता किसान आज अपने परिवार सहित दाने-दाने के लिए मुहताज हैं। दुनिया भर के बाज़ारों को कपड़ा मुहैया करने वाला बुनकर अपने तथा अपने बच्‍चों के तन ढँकने-भर को भी कपड़ा नहीं पा रहा है। सुन्‍दर महलों का निर्माण करने वाले राजगीर, लोहार तथा बढ़ई स्‍वयं गन्‍दे बाड़ों में रहकर ही अपनी जीवन-लीला समाप्‍त कर जाते हैं। इसके विपरीत समाज के जोंक शोषक पूँजीपति ज़रा-ज़रा-सी बात के लिए लाखों का वारा-न्‍यारा कर देते हैं।
यह भयानक असमानता और ज़बरदस्‍ती लादा गया भेदभाव दुनिया को एक बहुत भयानक उथल-पुथल की ओर लिए जा रहा है। यह स्थिति अधिक दिनों तक क़ायम नहीं रह सकती। स्‍पष्‍ट है कि आज का धनिक समाज एक भयानक ज्‍वालामुखी के मुख पर बैठकर रंगरेलियाँ मना रहा है और शोषकों के मासूम बच्‍चे तथा करोड़ों शोषित लोग एक भयानक खड्ड की कगार पर चल रहे हैं।
--- भगतसिंह ('बम काण्‍ड पर सेशन कोर्ट में बयान' से)

15 Sept 2008

स्‍म़ति संकल्‍प यात्रा के तहत पुस्‍तक विमोचन के अवसर पर आमन्‍त्रण

भगतसिंह और उनके साथियों के जीवन, विचार और कार्यों पर आधारित एस. इरफ़ान हबीब की पुस्‍तक 'बहरों को सुनाने के लिए' (टू मेक द डेफ हियर का हिन्‍दी अनुवाद) के विमोचन के अवसर पर आप सादर आमन्त्रित हैं।


कार्यक्रम:
प्रो. सव्‍यसाची भट्टाचार्य, चेयरमैन आईसीएचआर, द्वारा पुस्‍त्‍क का विमोचन
एस. इरफ़ान हबीब अपनी पुस्‍तक के बारे में
कृष्‍णा सोबती और असद ज़ैदी द्वारा पुस्‍तक पर चर्चा
पुस्‍तक के बारे में सत्‍यम (हिन्‍दी अनुवादक) का वक्‍तव्‍य

इस अवसर पर भगतसिंह और उनके साथियों पर आधारित पुस्‍तकों और पोस्‍टरों/चित्रों की प्रदर्शनी भी लगायी जायेगी।

कार्यक्रम का समय: 26 सितम्‍बर, 08 (शुक्रवार) को शाम 5:30 बजे से
कार्यक्रम स्‍थल : त्रिवेणी कला संगम सभागार, तानसेन मार्ग, नई दिल्‍ली

देश को एक आमूल परविर्तन की आवश्‍यकता है...

सभ्‍यता का यह प्रासाद यदि समय रहते संभाला न गया तो शीघ्र ही चरमराकर बैठ जायेगा। देश को एक आमूल परिवर्तन की आवश्‍यकता है। और जो लोग इस बात को महसूस करते हैं उनका कर्तव्‍य है कि साम्‍यवादी सिद्धान्‍तों पर समाज का पुनर्निर्माण करें। जब तक यह नहीं किया जाता और मनुष्‍य द्वारा मनुष्‍य का तथा एक राष्‍ट्र द्वारा दूसरे राष्‍ट्र का शोषण, जिसे साम्राज्‍यवाद कहते हैं, समाप्‍त नहीं कर दिया जाता तबतक मानवता को उसके क्‍लेशों से छुटकारा मिलना असम्‍भव है, और तबतक युद्धों को समाप्‍त कर विश्‍व-शान्ति के युग का प्रादुर्भाव करने की सारी बातें महज ढोंग के अतिरिक्‍त और कुछ भी नहीं हैं। क्रान्ति से हमारा मतलब अन्‍ततोगत्‍वा एक ऐसी समाज-व्‍यवस्‍था की स्‍थापना से है जो इस प्रकार के संकटों से बरी होगी और जिसमें सर्वहारा वर्ग का आधिपत्‍य सर्वमान्‍य होगा। और जिसके फलस्‍वरूप स्‍थापित होने वाला विश्‍व-संघ पीडि़त मानवता को पूँजीवाद के बन्‍धनों से और साम्राज्‍यवादी युद्ध की तबाही से छुटकारा दिलाने में समर्थ हो सकेगा।
-- भगतसिंह ('बम काण्‍ड पर सेशन कोर्ट में बयान' से)

12 Sept 2008

साम्‍प्रदायिक दंगे और उनका इलाज

भारतवर्ष की दशा इस समय बड़ी दयनीय है। एक धर्म के अनुयायी दूसरे धर्म के अनुयायियों के जानी दुश्‍मन हैं। अब तो एक धर्म का होना ही दूसरे धर्म का कट्टर शत्रु होना है।...
ऐसी स्थिति में हिन्‍दुस्‍तान का भविष्‍य बहुत अन्‍धकारमय नज़र आता है। इन ''धर्मों'' ने हिन्‍दुस्‍तान का बेड़ा ग़र्क कर दिया है। और अभी पता नहीं कि यह धार्मिक दंगे भारतवर्ष का पीछा कब छोड़ेंगे। इन दंगों ने संसार की नज़रों में भारत को बदनाम कर दिया है। और हमने देखा है इस अन्‍धविश्‍वास के बहाव में सभी बह जाते हैं। कोई बिरला ही हिन्‍दू, मुसलमान या सिख होता है, जो अपना दिमाग ठण्‍डा रखता है, बाक़ी सबके सब धर्म के ये नामलेवा अपने नामलेवा धर्म के रौब को क़ायम रखने के लिए डण्‍डे-लाठियॉं, तलवारें-छुरे हाथ में पकड़ लेते हैं और आपस में सिर फोड़-फोड़ कर मर जाते हैं। बाकी बचे कुछ तो फांसी चढ़ जाते हैं और कुछ जेलों में फेंक दिये जाते हैं। इतना रक्‍तपात होने पर इन ''धर्मजनों'' पर अंग्रेज़ी सरकार का डण्‍डा बरसता है और फिर इनके दिमाग का कीड़ा ठिकाने पर आ जाता है।

11 Sept 2008

अधिकार मांगने से नहीं मिलते, उनके लिए संघर्ष करना पड़ता है...

भगतसिंह ने कहा...

अधिकार मांगो नहीं। बढ़कर ले लो। और उन्‍हें किसी को भी तुम्‍हें देने मन दो यदि मुफ्त में तुम्हें कोई अधिकार दिया जाता है तो समझो कि उसमें कोई न कोई राज़ ज़रूर है। ज्‍़यादा सम्‍भावना यही है कि किसी गलत बात को उलट दिया गया है।

- शहीदेआज़म भगत की जेल नोटबुक से

9 Sept 2008

क्रान्ति की स्पिरिट...

भगतसिंह ने कहा...
जब गतिरोध की स्थिति लोगों को अपने शिकंजे में जकड़ लेती है तो किसी भी प्रकार की तब्‍दीली से वे हिचकिचाते हैं। इस जड़ता और निष्क्रियता को तोड़ने के लिए एक क्रान्तिकारी स्पिरिट पैदा करने की ज़रूरत होती है, अन्‍यथा पतन और बर्बादी का वातावरण छा जाता हैं। लोगों को गुमराह करने वाली प्रतिक्रियावादी शक्तियां जनता को ग़लत रास्‍ते पर ले जाने में सफल हो जाती हैं। इससे इन्‍सान की प्रगति रुक जाती है और उसमें गतिरोध आ जाता है। इस परिस्थिति को बदलने के लिए यह जरूरी है कि क्रान्ति की स्पिरिट ताज़ा की जाये, ताकि इन्‍सानियत की रूह में हरकत पैदा हो।

5 Sept 2008

विचार अमर होते हैं___

भगतसिंह ने कहा़...
हम जनता का ध्‍यान इतिहास में बराबर दोहराये गये इस सबक़ की ओर दिलाना चाहते हैं कि ग़ुलामी और बेबसी से कराहती जनता को कुचलना आसान है, परन्‍तु विचार अमर होते हैं और दुनिया की कोई ताक़त उन्‍हें कुचल नहीं सकती। दुनिया में अनेक बड़े-बड़े साम्राज्‍य नष्‍ट हो गये, परन्‍तु जनसाधारण ने जिन विचारों से प्रेरित होकर इन्‍हें समाप्‍त किया वे आज भी जीवित हैं। बूरबों (फ्रांसीसी राजवंश) मिट गये, पर क्रान्तिकारी सीना ताने चल रहे हैं।

नौजवानों का कर्तव्‍य...

भगतसिंह ने कहा...
युवकों के सामने जो काम है, वह काफी कठिन है और उनके साधन बहुत थोड़े हैं। उनके मार्ग में बहुत सी बाधाएँ भी आ सकती हैं। लेकिन थोड़े किन्‍तु निष्‍ठावान व्‍यक्तियों की लगन उन पर विजय पा सकती है। युवकों को आगे जाना चाहिए। उनके सामने जो कठिन एवं बाधाओं से भरा हुआ मार्ग है, और उन्‍हें जो महान कार्य सम्‍पन्‍न करना है, उसे समझना होगा। उन्‍हें अपने दिल में यह बात रख लेनी चाहिए कि ''सफलता मात्र एक संयोग है, जबकि बलिदान एक नियम है।'' उनके जीवन अनवरत असफलताओं के जीवन हो सकते हैं - गुरु गोविन्‍द सिंह को आजीवन जिन नारकीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था, हो सकता है उससे भी अधिक नारकीय परिस्थितियों का सामना करना पड़े। फिर भी उन्‍हें यह कहकर कि अरे, यह सब तो भ्रम था, पश्‍चाताप नहीं करना होगा।
नौजवान दोस्‍तो, इतनी बड़ी लड़ाई में अपने आपको अकेला पाकर हताश मत होना। अपनी शक्ति को पहचानो। अपने ऊपर भरोसा करो। सफलता आपकी है।

जीवन का उद्देश्‍य...

भगतसिंह ने कहा...

जीवन का उद्देश्‍य मन को नियंत्रित करना नहीं बल्कि उसका सुसंगत विकास करना है, मरने के बाद मोक्ष प्राप्‍त करना नहीं, बल्कि इस संसार में ही उसका सर्वोत्‍तम इस्‍तेमाल करना है, केवल ध्‍यान में ही नहीं, बल्‍ि‍क दैनिक जीवन के यथार्थ अनुभव में भी सत्‍य, शिव और सुन्‍दर का साक्षात्‍कार करना है, सामाजिक प्रगति कुछेक की उन्‍नति पर नहीं, बल्कि बहुतों की समृद्धि पर निर्भर करती है, और आत्मिक जनतंत्र या सार्वभौमिक भ्रातृत्‍व केवल तभी प्राप्‍त किया जा सकता है, जब सामाजिक-राज‍नीतिक और आद्योगिक जीवन में अवसर की समानता हो।

- शहीदे आज़म भग‍तसिंह की जेल नोटबुक से

छोटे भाई कुलतार सिंह के नाम भगतसिंह के अंतिम पत्र से...

उसे यह फ़ि‍क्र है हरदम नया तर्जे़-जफ़ा क्‍या है,
हमें यह शौक़ है देखें सितम की इन्‍तहाँ क्‍या है।

दहर से क्‍यों ख्‍़ाफ़ा रहें, चर्ख़ का क्यों गिला करें,
सारा जहाँ अदू सही, आओ मुक़ाबला करें।

कोई दम का मेहमॉं हूँ ऐ अहले-महफ़ि‍ल,
चराग़े-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ।

हवा में रहेगी मेरे ख्‍़ायाल की बिजली,
ये मुश्‍ते-ख़ाक़ है फानी, रहे रहे न रहे।

स्‍मृति संकल्‍प यात्रा का अंतिम चरण

नौजवान भारत सभा और दिशा छात्र संगठन की तरफ से भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव के 75वें शहादत वर्ष से लेकर भगतसिंह की जन्‍मशताब्‍दी वर्ष तक चलने वाली स्‍मृति संकल्‍प यात्रा के अंतिम चरण के तौर पर 28 अगस्‍त, 2008 से 28 सितम्‍बर, 2008 तक एक महीने का सघन क्रान्तिकारी प्रचार अभियान देश के विभिन्‍न हिस्‍सों में जोर शोर से चलाया जा रहा है। स्‍मृति संकल्‍प यात्रा के समाप्‍त हो जाने के बाद भी ये संगठन क्रान्तिकारी विचारों को देश के कोने कोने में फैलाने की मुहिम जारी रखेंगे। पिछले तीन वर्षों के दौरान इस क्रान्तिकारी यात्रा का देश की आम जनता ने सहर्ष स्‍वागत किया और नौजवानों और इंसाफपसंद नागरिकों की इस मुहिम को सहयोग किया। भगतसिंह के विचारों की प्रासंगिकता को आज के दौर में लोगों ने और भी गंभीरता से महसूस किया।

छात्रों, नौजवानों, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों और नागरिकों के एक छोटे से समूह के साथ शुरू हुई यह यात्रा आज देश के कई हिस्‍सों में फैल चुकी है। यात्रा से जुड़े कार्यकर्ताओं ने पर्चों, पस्तिकाओं, गीतों, नाटकों और हर संभव तरीके से देश की आम मेहनतकश आबादी के बीच क्रान्तिकारियों के विचारों का प्रचार प्रसार किया और अपने देश की उस सच्‍ची क्रन्तिकारी विरासत से लोगों को परिचित किया हमारे देशी हुक्‍मरानों ने आजादी के बाद से जिसे विस्‍मृति की गर्त में धकेलने का हर संभव प्रयास किया। देश की आम जनता तक भगतसिंह के विचारों को ले जाना आज और भी जरूरी है ताकि लोग समझ सकें कि भगतसिंह किस आजादी की बात करते थे और कांग्रेस के रास्‍ते से मिलने वाली आजादी के बारे में उन्‍होंने जो कुछ कहा था वह सब कितने नग्‍न रूप में आज हमारे सामने मौजूद है। देश और दुनिया के हालात हमें सोचने पर मजबूर कर रहे हैं कि जब तक सत्ता मेहनतकश वर्गों के हाथ में नहीं आ जाती जबतक उत्‍पादन और राजकाज पर देश की बहुलांश आबादी का अधिकार नहीं हो जाता तबतक असली आजादी हासिल नहीं की जा सकती।
स्‍मृति संकल्‍प यात्रा के अंतिम चरण में नौजवानों की टोलियां गली मुहल्‍लों, बस्तियों कारखानों और गांव गांव जाकर सीधे आम जनता के बीच क्रान्तिकारी विचारों का प्रचार कर रही हैं, भगतसिंह के संदेश को लोगों तक पहुंचा रही हैं। इस अभियान के तहत यात्रा टोलियां गली मोहल्‍लों में प्रभात फेरियां करती हैं, बसों, ट्रेनों, चौराहों और बाजारों में प्रचार अभियान चलाती हैं घर घर जाकर लोगों को जागृत करती हैं। अपने अपने क्षेत्रों में कार्यकर्ता परिचर्चाएं, गोष्ठियां और सेमिनार आयोजित करते हैं। क्रान्तिकारियों के जीवन से जुड़ी पुस्‍तकों और पोस्‍टरों की प्रदर्शनियां लगाते हैं। नुक्‍कड़ नाटकों, क्रान्तिकारी गीतों और अन्‍य सांस्‍कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला लगातार जारी है। इस दौरान अनेक क्षेत्रों में नौजवान भारत सभा और दिशा छात्र संगठन की इकाइयां गठित की गईं और नौजवानों ने क्रान्तिकारी विचारों पर चलने का संकल्‍प लिया। जेल की काल कोठरी से देश के नौजवानों के नाम भगतसिंह का यही अंतिम संदेश था।

हम सभी इंसाफपसंद लोगों से यह अपील करते हैं कि जन्‍मशताब्‍दी वर्ष के समापन के अवसर पर भगतसिंह और उनके सभी साथी क्रान्तिकारियों को सच्‍ची श्रद्धांजलि देने के लिए वे भी स्‍मृति संकल्‍प यात्रा के तहत किए जाने वाले कार्यक्रमों में भागीदारी करें और इस आन्‍दोलन को आगे बढ़ाने के लिए हर संभव सहयोग करें।

स्‍मृति संकल्‍प यात्रा के अंतिम चरण में रोज रोज चलाये जा रहे क्रान्तिकारी प्रचार अभियानों के अलावा क्रान्तिकारी विरासत से संबंधित कुछ महत्‍वपूर्ण पुस्‍तकों का विमोचन किया जायेगा पुस्‍तक और पोस्‍टर प्रदर्शनियां आयोजित की जायेंगी तथा अन्‍य कार्यक्रम आयोजित किए जायेंगे। इन कार्यक्रमों की नियमित जानकारी के लिए कृपया इस ब्‍लाग को देखते रहें।

26 Mar 2008

क्रान्तिकारी नवजागरण के तीन साल

उठो! जागो!! आगे बढ़ो!!!

भगतसिंह की बात सुनो!

नई क्रान्ति की राह चलो!

स्मृति संकल्प यात्रा

(23 मार्च 2005-28 सितम्बर 2008)

नयी प्रेरणा - नया संकल्प - नयी शुरुआत

क्रान्तिकारी नवजागरण के तीन साल

भगतसिंह और उनके साथियों की शहादत की पचहत्तरवीं वर्षगाँठ और जन्मशताब्दी के तीन वर्षों को यादगार बनाओ!

पूँजीवादी लूट और डाकेज़नी के ख़िलाफ़ नयी मज़दूर क्रान्ति का सन्देश हर मज़दूर के घर तक और हर बाग़ी दिल तक पहुँचाओ!!

जागो फिर एक बार!

भगतसिंह का सपना आज भी अधूरा

जागेगा मेहनतकश, करेगा इसे पूरा!

बिगुल मज़दूर दस्ता l नौजवान भारत सभा l दिशा छात्र संगठन


बहनो, भाइयो, हमसफ़र साथियो,

मार्च 2005 से मार्च 2006 तक का समय भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत का पचहत्तारवाँ वर्ष था। यही जनता की सच्ची आज़ादी के हिमायती पत्रकार गणेशशंकर विद्यार्थी की शहादत का भी 75वाँ वर्ष था और 2005 में ही 27 फरवरी से चन्द्रशेखर आज़ाद की शहादत के 75वें वर्ष की और 23 जुलाई से उनके जन्मशताब्दी वर्ष की शुरुआत हुई। 28 सितम्बर 2007 से 28 सितम्बर 2008 तक शहीदेआज़म भगतसिंह के जन्म के सौ साल पूरे होने का वर्ष मनाया जा रहा है। यही नहीं, 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के 150 वर्ष भी मई, 2007 में पूरे हुए। इन्हीं तीन वर्षों को हम लोग इतिहास की अधूूरी और छूटी हुई ज़िम्मेदारियों को याद करने और उन्हें पूरा करने का संकल्प लेने और एक नयी शुरुआत करने का ऐतिहासिक समय बनाना चाहते हैं। 'स्मृति' यानी शहीदों के सपनों और सन्देशों को याद करना, 'संकल्प' यानी उन्हें पूरा करने के लिए क़सम खाना और 'यात्रा' यानी इस बात को हर दबे-कुचले, मज़लूम मेहनतकश और इन्क़लाबी, इन्साफ़पसन्द नौजवान तक पहुँचाने की कोशिश करना। यही है 'स्मृति संकल्प यात्रा', जिसमें शामिल होने के लिए और जिसके मक़सद को पूरा करने के लिए हम आपको न्यौता दे रहे हैं।

भगतसिंह की बहादुरी और क़ुर्बानी के बारे में तो पूरा देश जानता है, लेकिन ज्यादातर पढ़े-लिखे लोग तक यह नहीं जानते कि सिर्फ़ 23 साल की उम्र में फाँसी का फन्दा चूमने वाला यह जाँबाज़ नौजवान एक महान, दूरन्देश विचारक था, जो सिर्फ अंग्रेज़ी हुकूमत और विदेशी पूँजीपतियों की लूट के नहीं बल्कि देशी पूँजीपतियों की हुकूमत और लूट के भी ख़िलाफ़ था। भगतसिंह और उनके नौजवान साथियों के लिए आज़ादी की लड़ाई का मतलब था, एक मज़दूर क्रान्ति के द्वारा मेहनतकश राज की स्थापना जिसमें उत्पादन, राजकाज और समाज के ढाँचे पर आम मेहनतकश जनता काबिज़ हो। अपने क्रान्तिकारी संगठन के घोषणापत्र में, अदालत में दिये गये बयानों में, कई लेखों में और जेल से भेजे गये सन्देशों में भगतसिंह और उनके साथियों ने बार-बार इस बात को साफ़ किया था कि क्रान्तिकारी दस फ़ीसदी थैलीशाहों के लिए नहीं बल्कि नब्बे फ़ीसदी आम मेहनतकश जनता के लिए सच्ची आज़ादी और जनतंत्र हासिल करना चाहते हैं। अपने आखिरी दिनों तक भगतसिंह गहरी पढ़ाई और सोच-विचार के बाद इस नतीजे पर पहुँच चुके थे कि इस मक़सद को चन्द बहादुर लोग हथियार उठाकर हासिल नहीं कर सकते, बल्कि इसके लिए फ़ैक्टरियों और खेतों में खटने वाले करोड़ों मेहनतकशों तक क्रान्ति का सन्देश पहुँचाना होगा और उन्हें संगठित करना होगा। फाँसी की कोठरी से क़ौम के नाम भेजे गये अपने आख़िरी सन्देश में भगतसिंह ने इस बात को बिल्कुल साफ़ कर दिया था।

भगतसिंह और उनके साथियों ने साफ़-साफ़ और बार-बार कहा था कि कांग्रेस आम आबादी की ताक़त का इस्तेमाल करके हुकूमत की बागडोर देशी पूँजीपतियों के हाथों में सौंपना चाहती है और उसकी लड़ाई का अन्त साम्राज्यवाद के साथ समझौते के रूप में ही होगा। उन्होंने निहायत दूरन्देशी के साथ भविष्यवाणी की थी कि महात्मा गाँधीी की नीयत और मंशा चाहे जितनी भलमनसाहत भरी हो, उनकी सोच काल्पनिक आदर्शवादी है, हृदय-परिवर्तन तथा शोषकों-शोषितों में मेल-मिलाप की उनकी शिक्षा अमल में आ ही नहीं सकती और गाँधीीवादी रास्ते से आख़िरकार पूँजीवादी समाज-व्यवस्था ही क़ायम होगी। भगतसिंह और उनके साथियों के ये क्रान्तिकारी विचार चूँकि आज़ाद भारत के हुक्मरानों के लिए भी बेहद ख़तरनाक थे, इसलिए उन्हें तमाम तरह के तीन-तिकड़म करके दबा और छुपा दिया गया। भगतसिंह के कैलेण्डर तो घर-घर में पहुँच गये, लेकिन मुक्ति की राह रोशन करने वाले उनके विचारों को हुक्मरानों और उनके भाड़े के टट्टू बुद्धिजीवियों ने लोगों की नज़रों से ओझल बनाये रखा। स्मृति संकल्प यात्रा के दौरान हमारा यह संकल्प है कि भगतसिंह और उनके साथियों के विचारों को पूरे देश की आम मेहनतकश जनता तक पहुँचाने के लिए हम दिन-रात मेहनत करेंगे, धाुऑंधाार प्रचार कार्य करेंगे और एक-एक मज़दूर के घर तक, हर बहादुर, इन्साफ़पसन्द, स्वाभिमानी बाग़ी नौजवान तक यह सन्देश पहुँचायेंगे कि हमें शहीदों के रास्ते पर चलकर उनका अधाूरा काम पूरा करना है। भगतसिंह और उनके साथियों की चिट्ठियों, बयानों, सन्देशों, लेखों और क्रान्तिकारी दस्तावेज़ों को हम आम लोगों से ही मदद जुटाकर छापते जा रहे हैं और उन्हें ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाते जा रहे हैं। हमारे पास सरकार और पूँजीपतियों की तरह करोड़ों की पूँजी, बड़े-बड़े प्रेस-अख़बार और टी.वी. चैनल नहीं हैं, पर हमारे पास अपना संकल्प है, आम मेहनतकशों के खून-पसीने की कमाई से जुटाये जाने वाले अनमोल सहयोग की पूँजी है और बदलाव के रास्ते और तैयारी की एक दिशा और सोच है। हमारे पास भगतसिंह और क्रान्तिकारी शहीदों की विरासत है और नये मज़दूर इन्क़लाब का सपना है। हमारा रास्ता लम्बा और कठिनाइयों से भरा है। हमें कठिनाइयों, नाकामयाबियों और हारों का सामना तो करना पड़ेगा लेकिन हमारी अन्तिम जीत को भला कौन रोक सकता है?

बहनो, भाइयो, साथियो,

अपनी फाँसी से ठीक तीन दिन पहले भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव ने पंजाब के गवर्नर को लिखे गये पत्र में लिखा था : फ्...हम यह कहना चाहते हैं कि यु( छिड़ा हुआ है और यह यु( तब तक चलता रहेगा, जब तक कि शक्तिशाली व्यक्ति भारतीय जनता और श्रमिकों की आय के साधानों पर अपना एकाधिाकार जमाये रखेंगे। चाहे ऐसे व्यक्ति अंग्रेज़ पूँजीपति, अंग्रेज़ शासक या सर्वथा भारतीय ही हों। उन्होंने आपस में मिलकर एक लूट जारी कर रखी है। अगर शु( भारतीय पूँजीपतियों के द्वारा ही निर्धानों का खून चूसा जा रहा हो तब भी इस स्थिति में कोई अन्तर नहीं पड़ता।य् इस पत्र में हमारे महान शहीदों ने आगे स्पष्ट लिखा था कि तमाम कठिनाइयों, वक्ती हारों और बीच-बीच में रुकावटों के बावजूद आम मेहनतकशों की मुक्ति क़ी लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक कि समाज का पूँजीवादी ढाँचा ख़त्म नहीं हो जाता और मज़दूर क्रान्ति के बाद एक नये युग की शुरुआत नहीं हो जाती।

आज पूरी दुनिया के पूँजीपति समाजवाद की नाकामयाबी पर शोरगुल मचाते हुए अब उसे नामुमकिन बता रहे हैं। लेकिन यह उनकी ख़ामख्याली है। हमें दुनिया के तमाम देशों का इतिहास जानना होगा। वह क्या बताता है? इतिहास में भी, सफल या विजयी होने के पहले, क्रान्तियाँ शुरुआती एक या कुछ राउण्डों में हारती रही हैं। लेकिन आखिरकार जीतकर, क्रान्तियाँ फरानी पड़ चुकी समाज-व्यवस्था को धवस्त करके उसके खण्डहर पर नया सामाजिक ढाँचा खड़ा करने में कामयाब होती रही हैं। आगे भी ऐसा ही होगा। पूँजीवाद और साम्राज्यवाद अमर नहीं हैं। पूँजीवादी ढाँचे के जो लाइलाज रोग हैं, यह जो ज़ुल्म-लूट-ग़ैरबराबरी-ऍंधोरगर्दी की अति है, उसे देखकर यह साफ़ हो जाता है कि भारत की और पूरी दुनिया की मेहनतकश आबादी अब पूँजीवादी अत्याचार को जड़मूल से ख़त्म करने की फ़ैसलाकुन लड़ाई लड़ेगी। इसी में मानवता का भविष्य है। या तो समाजवाद या फिर विनाश मानवता के सामने दो ही रास्ते हैं।

हमारे देश में आज़ादी के बाद के साठ वर्षों का सफ़रनामा हमारे सामने पन्ना-दर-पन्ना खुला पड़ा है। मेहनतकश जनता की सारी उम्मीदें और सारे सपने आज राख हो चुके हैं। सत्तााधाारियों के सारे वायदे छलावे साबित हुए हैं। भारतीय पूँजीपतियों ने समाजवाद के मुखौटे को उतारकर गली के ठगों-बटमारों और समुद्री लुटेरों की तरह लूट मचा रखी है। साथ ही, देश की अकूत प्राकृतिक सम्पदा और मेहनतकशों को लूटने के लिए उन्होंने विदेशी लुटेरों को भी खुली छूट दे रखी है। विदेशी लूट के ख़िलाफ़ भारतीय जनता के बेमिसाल संघर्ष और महान शहीदों की कुर्बानियों की उपलब्धिायों को पूरी तरह से तबाह कर दिया गया है। तमाम चुनावी पूँजीवादी पार्टियों के साथ ही मज़दूरों का रहनुमा होने का दम भरने वाले चुनावबाज़ नकली कम्युनिस्ट भी जनता से ग़द्दारी करके महज़ दुअन्नी-चवन्नी की भीख माँगने की राजनीति की गटरगंगा में गोते लगा रहे हैं और संसदीय सुअरबाड़े में लोट लगा रहे हैं। सरकारें चलाते हुए वे किसी भी पूँजीवादी पार्टी की ही तरह ज़ालिमाना तरीक़े से नयी पूँजीवादी आर्थिक नीतियों को लागू कर रहे हैं। नन्दीग्राम और सिंगुर इसके जीते-जागते सबूत हैं।

किस्सा-कोताह यह कि चुनावी राजनीति, आज की सुधाारवादी ट्रेड यूनियन राजनीति और एनजीओपन्थियों की पैबन्दवादी-रियायतवादी राजनीति ये सभी अलग-अलग रूपों में पूँजीवाद की ही सेवा कर रहे हैं और असली विकल्प से जनता का धयान भरमा-भटका रहे हैं। जाति और धार्म के नाम पर वोट बैंक की राजनीति करने वाली पार्टियाँ मेहनतकश जनता को बाँटकर उनकी जुझारू एकजुटता की राह में गम्भीर अड़चन पैदा कर रही हैं। पूँजीवादी राजनीति के कचरे पर ज़हरीले पौधाों के समान पनपने वाले धाार्मिक कट्टरपन्थी फासिस्ट धाार्मिक जुनून की राजनीति करते हुए नरसंहारों-सामूहिक बलात्कारों आदि के रूप में नंगनाच कर रहे हैं। देश की सारी तरक्क़ी की चमक-दमक और शोरगुल सिर्फ़ मुट्ठीभर ऊपर के लोगों के लिए है। विकास का मतलब है अपार दुखों और ऑंसुओं के सागर में विलासिता की रोशन मीनारों-शीशमहलों से भरे अमीरी के कुछ टाफओं का निर्माण। जहाँ तक मज़दूरों का सवाल है, उनकी 98 फ़ीसदी आबादी असंगठित है जो दिहाड़ी, ठेका या पीसरेट पर खटती है और दस घण्टे से लेकर चौदह घण्टे तक रोज़ाना ग़ुलामों की तरह खटने और हाड़ गलाने के बावजूद नर्क के बाशिन्दों जैसी ही ज़िन्दगी उसे हासिल हो पाती है। लम्बी लड़ाई के बाद काम के घण्टों, न्यूनतम मज़दूरी और अन्य जो भी थोड़ी-बहुत सुविधााएँ मज़दूरों ने हासिल की थीं, वे एक-एक करके उनसे छीनी जा चुकी हैं और ट्रेड यूनियनबाज़ दलाल बस सौदेबाज़ी और ज़ुबानी जमाखर्च करते रह गये हैं। मेहनत-मजूरी करके जीने वालों की आबादी साठ करोड़ के ऊपर पहुँच रही है। मँझोले किसान और मधय वर्ग की आम तबाह-परेशान आबादी पैंतीस करोड़ के आसपास है। चौरासी करोड़ आबादी, सरकारी ऑंकड़ों के हिसाब से, बीस रुपये रोज़ाना से कम पर ज़िन्दगी बिताती है। काम करने योग्य लगभग साठ फ़ीसदी आबादी बेरोज़गारी और र्अ(बेरोजगारी का शिकार है। यानी मुट्ठी भर पूँजीपतियों, व्यापारियों, अफ़सरों, नेताओं, ठेकेदारों, दलालों, सट्टेबाज़ों, डाक्टरों-इंजीनियरों-प्रोफ़ेसरों, अख़बार-टी.वी. के ऊँचे पदों वाले लोगों आदि के लिए ही देश की सारी तरक्क़ी है, सभी शॉपिंग मॉल, आलीशन बंगले, शानदार गाड़ियाँ हैं और ऐद्धयाशी के सारे सामान हैं।

यह पूँजीवादी आज़ादी का वही चेहरा है, जिससे भगतसिंह ने हमें आगाह किया था। इस बर्बर सभ्यता को तबाह कर देने के लिए फ़ैसलाकुन लड़ाई की तैयारी ही एकमात्र रास्ता है और हमारे ज़िन्दा होने का सबूत भी। हालात कठिन हैं, लेकिन हार को जीत में बदलने के लिए हमें एक नयी शुरुआत करनी ही होगी। दूसरा और कोई रास्ता भी क्या है? सफ़र यदि हज़ार मील लम्बा हो तो भी शुरुआत तो एक क़दम उठाकर ही की जाती है। भगतसिंह के विचार एक जलती मशाल की तरह एक नयी शुरुआत की राह दिखा रहे हैं। शहीदों की कुर्बानियों को और उनके सपनों को नये सिरे से याद करने का और नयी क्रान्ति की तैयारी का संकल्प लेने का यही समय है और स्मृति संकल्प यात्रा का यही सन्देश है। भगतसिंह और उनके साथियों का सपना एक जलता हुआ सवाल बनकर हमारी ऑंखों में झाँक रहा है, उनकी विरासत हमें ललकार रही है और भविष्य हमें आवाज़ दे रहा है।

बहनो, भाइयो, साथियो,

सवाल यह है कि इस क्रान्तिकारी नवजागरण की नयी मुहिम की ज़िम्मेदारियाँ क्या हैं? यह एक लम्बी यात्रा है, पर शुरुआत कहाँ से की जाये? हम आपके सामने कोई तैयारशुदा प्रोग्राम नहीं रख रहे हैं। इस छोटे-से परचे में यह मुमक़िन नहीं और हम यह करना भी नहीं चाहते। शुरुआत करने के बारे में हम एक आम दिशा और कुछ बिन्दु रख रहे हैं। अमल के दौरान, मिल-बैठकर हम अपनी साझा समझ बनाते-बढ़ाते जायेंगे।

(1) सबसे पहला काम तो यही है कि हम भगतसिंह और उनके साथियों के लक्ष्य, सपने और विचारों की क्रान्तिकारी विरासत को ख़ुद जाने-समझें और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इन्हें पहुँचायें। इन महान क्रान्तिकारी शहीदों के साहित्य को तथा उनके बारे में लिखी गयी फस्तकों-फस्तिकाओं को बड़ी से बड़ी आबादी तक पहुँचाने के लिए तमाम मेहनतकश साथियों और क्रान्तिकारी नौजवानों को ज्यादा से ज्यादा आर्थिक सहयोग और समय देना होगा, अभियान चलाने होंगे, परचे-पोस्टर निकालने होंगे और यात्राएँ निकालनी होंगी। हमारा लक्ष्य यह होना चाहिए कि पूरे देश के मेहनतकशों और आम लोगों तक शहीदों की वैचारिक विरासत और नयी क्रान्ति का सन्देश पहुँचाया जाये। आप यदि इस परचे के विचारों के क़ायल हैं तो कम से कम इतना तो कीजिये ही कि हर दिन अपने जैसे पाँच लोगों तक यह परचा पहुँचाइये और हर माह अपनी रोटी तक में से कटौती कर कुछ सौ और परचे छापने के लिए, भगतसिंह और उनके साथियों का साहित्य छापने के लिए तथा अन्य क्रान्तिकारी साहित्य छापने के लिए सहयोग कीजिये और ऐसा साहित्य जन-जन तक पहुँचाने की मुहिम में ज्यादा से ज्यादा भागीदारी कीजिये। ऐसा इसलिए, क्योंकि भगतसिंह ने ही कहा था, ''क्रान्ति की तलवार विचारों की सान पर तेज़ होती है।''

(2) यदि भगतसिंह के सपनों को साकार करना है तो मेहनतकशों को सबसे पहले रियायतों की भीख माँगने और चुनावी मदारियों पर भरोसा करने की मानसिकता से छुटकारा पाना होगा। यानी उन्हें पूँजीवादी चुनावी राजनीति और सुधारवादी ट्रेड यूनियनवादी-अर्थवादी राजनीति से पिण्ड छुड़ाना होगा। उन्हें नकली वामपन्थियों की असलियत समझनी होगी। साथ ही मज़दूरों और इन्क़लाबी नौजवानों को यह भी समझना होगा कि थोड़े-से लोग बहादुरी, क़ुर्बानी और हथियारों के भरोसे इन्क़लाब नहीं कर सकते। व्यापक मेहनतकश जनता एकजुट और संगठित होकर जनक्रान्ति के रास्ते से ही पूँजीवादी निज़ाम को तबाह कर सकती है, न कि आतंकवाद के रास्ते। क्रान्तिकारी बदलाव के लिए सबसे पहले मज़दूरों को क्रान्तिकारी अधययन मण्डलों का जाल बिछाना होगा। उन्हें क्रान्ति के विज्ञान और इतिहास का अधययन करना होगा। मज़दूर वर्ग का ऐतिहासिक मिशन है पूँजीवाद को समाप्त करना और इसे अच्छी तरह से समझाने के लिए और मज़दूरों की चेतना को क्रान्तिकारी बनाने के लिए मज़दूरों के सहयोग और ताक़त से एक इन्क़लाबी मज़दूर अख़बार निकाला जाना बेहद ज़रूरी है। 'बिगुल' अख़बार इसी का एक नमूना है, जिसे लाखों-करोड़ों मज़दूरों तक पहुँचाने का लक्ष्य होना चाहिये और इसके लिए हज़ारों मज़दूर स्वयंसेवक कार्यकर्ता तैयार करने होंगे। इसी प्रक्रिया में नयी मज़दूर क्रान्ति को नेतृत्व देने वाली शक्ति के निर्माण के काम को नये सिरे से हाथ में लेना होगा और आगे बढ़ाना होगा।

(3) मज़दूरों को, बेशक एक-एक कारखाने में अपनी आर्थिक माँगों को लेकर लड़ने के लिए, नये सिरे से क्रान्तिकारी ट्रेड यूनियन आन्दोलन खड़ा करना होगा और इस प्रक्रिया में एकजुट और संगठित होकर लड़ने की शुरुआती ट्रेनिंग हासिल करनी होगी। लेकिन इन्हीं लड़ाइयों से वे अपना राजनीतिक लक्ष्य नहीं हासिल कर सकते। उन्हें अपनी राजनीतिक माँगों को लेकर लड़ना होगा। उन्हें एक पूँजीपति मालिक के बजाय पूरे पूँजीपति वर्ग और उसकी सरकार के विरुद्ध लड़ना होगा। इसके लिए ज़रूरी है कि वे काम के घण्टों, ठेका प्रथा के विरोध, रोजगार-सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा-आवास के अधिकार आदि सवालों पर अलग-अलग पेशों वाले और अलग-अलग कारख़ानों में खटने वाले मज़दूरों को एकजुट करें। इसके लिए कारख़ाने के बजाय इलाकाई आधाार पर ट्रेड यूनियनें नये सिरे से संगठित करनी होंगी। यह लम्बा काम है पर इसे हाथ में लेना ही होगा। छोटे-छोटे राजनीतिक अधिकारों-माँगों की लड़ाइयों की लड़ियाँ पिरोते हुए हमें अन्तिम राजनीतिक लक्ष्य के लिए संघर्ष की ज़मीन तैयार करनी होगी। मज़दूर वर्ग लड़ते हुए ही सीखेगा और यह समझेगा कि समाजवाद ही एकमात्र विकल्प और उसका लक्ष्य है तथा यह भी सीखेगा कि उसे हासिल करने का रास्ता क्या है? कारख़ानों के मज़दूरों के साथ ही गाँव के ग़रीबों के लिए भी यही अकेला रास्ता है।

(4) मज़दूरों के नौजवान सपूतों को, नौजवान मज़दूरों को और मधय वर्ग के क्रान्तिकारी नौजवानों को चुनावी मदारियों से पीछा छुड़ाकर, अपने ऐसे क्रान्तिकारी नौजवान संगठन बनाने होंगे जो मुफ्त और समान शिक्षा और सबको रोजगार के बुनियादी अधिकार के लिए संघर्ष को क़दम-ब-क़दम संगठित करते हुए आगे बढ़ायें तथा मेहनतकश जनता के हमक़दम और उसके संघर्षों के साझीदार बनें। ऐसे क्रान्तिकारी नौजवान संगठनों को समाज को दिमाग़ी ग़ुलामी से छुटकारा दिलाने के लिए सामाजिक बुराइयों, जात-पाँत आदि कुरीतियों, धार्मिक कट्टरपन, अन्धाविश्वास आदि के ख़िलाफ़ ज़बर्दस्त जुझारू और साहसी मुहिम छेड़नी होगी। उन्हें एक ठोस क्रान्तिकारी कार्यक्रम बनाते हुए भगतसिंह और उनके साथियों द्वारा बनायी गयी 'नौजवान भारत सभा' से सीखना होगा और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी नौजवान आन्दोलनों से सीखना होगा। इस दिशा में पहले क़दम के तौर पर नौजवानों को क्रान्तिकारी साहित्य के फस्तकालय और अधययन मण्डल बनाने होंगे, सांस्कृतिक टोलियाँ, प्रचार दस्ते, खेलकूद क्लब, स्वयंसेवक कोर आदि बनाने होंगे तथा अपने आसपास के माहौल में हर बुराई, हर अन्याय के विरुद्ध और आम जनता की ज़रूरी माँगों को लेकर आन्दोलन संगठित करने होंगे। ऐसे किसी नौजवान संगठन के लिए हम 'नौजवान भारत सभा' नाम का ही प्रस्ताव रखते हैं जो भगतसिंह और उनके साथियों द्वारा स्थापित नौजवान संगठन का नाम था। इस नवगठित नौजवान भारत सभा ने अपना एक मसौदा कार्यक्रम भी विचार के लिए प्रस्तुत किया है।

(5) इन्हीं कामों को विश्वविद्यालयों-कॉलेजों-स्कूलों में अंजाम देने के लिए क्रान्तिकारी छात्र संगठन खड़े करने होंगे। शिक्षा और रोज़गार के दूरगामी सवालों पर लम्बी लड़ाई की तैयारी करते हुए क्रान्तिकारी छात्र संगठन साम्राज्यवाद और पूँजीवाद के विरुद्ध नयी समाजवादी क्रान्ति की वैचारिक तैयारी और क्रान्तिकारी प्रचार के काम पर विशेष ज़ोर देगा। वह व्यापक छात्र आबादी को क्रान्ति का सक्रिय योद्धा बनाने का काम करेगा। वह छात्र राजनीति को एम.एल.ए.-एम.पी. का भरती केन्द्र एवं प्रशिक्षण केन्द्र के बजाय क्रान्तिकारी भरती एवं प्रशिक्षण केन्द्र बनाने की कोशिश करेगा। वह पूँजीवादी शिक्षा और संस्कृति के विरुद्ध छात्रों-युवाओं की चेतना तैयार करेगा, छात्रों की टोलियाँ बनाकर मज़दूरों के बीच क्रान्तिकारी प्रचार, शिक्षा और आन्दोलन की कार्रवाइयों में भागीदारी के कार्यक्रम बनायेगा और उन्हें अमल में लायेगा। इसी सोच के साथ आज 'दिशा छात्र संगठन' काम कर रहा है। लेकिन यह तो महज़ एक छोटी-सी शुरुआत है। इसे अभी बहुत आगे जाना है।

(6) पूरी दुनिया का इतिहास इस बात का गवाह है और भगतसिंह और उनके साथियों का भी यही मानना था कि आधीी आबादी, यानी कि औरतों की जागृति और भागीदारी के बिना न तो कोई सामाजिक क्रान्ति सफ़ल हो सकती है, न ही सामाजिक क्रान्ति में भागीदारी के बिना स्त्रियाँ अपनी ग़ुलामी से मुक्त हो सकती हैं। जो भगतसिंह के विचारों को मानते हैं, उन्हें स्त्रियों को बराबरी का दर्ज़ा देना होगा। मज़दूरों, नौजवानों और छात्रों के आन्दोलनों में स्त्रियों की भागीदारी बढ़ानी होगी। इसके साथ ही मज़दूर स्त्रियों और अन्य तबकों की स्त्रियों के स्वतन्त्र क्रान्तिकारी संगठन भी खड़े करने होंगे। इसकी शुरुआत अपने घरों से, अपनी माँ-बहनों-बेटियों-पत्नियों से करनी होगी। उन्हें पैरों की जूती समझना बन्द करना होगा। सामाजिक कुरीतियों का सबसे ज्यादा कहर स्त्रियाँ ही झेलती हैं। हमें इन कुरीतियों के खिलाफ़ समझौताहीन लड़ाई भी चलानी होगी।

(7) खाते-पीते कलम के टट्टू अपनी सुख-सुविधाा के लिए पूँजीवादी निज़ाम की चाकरी करते हैं। लेकिन जो बुद्धिजीवी प्रगतिशील विचार रखते हैं, वे आम मेहनतकश जनता के जीवन और संघर्षों से जुड़ने की दिल से कोशिश करते हैं। ऐसे बुद्धिजीवियों को भी अपने क्रान्तिकारी संगठन बनाने होंगे, जनता के अधिकारों के लिए लड़ना होगा और जनता के बीच क्रान्तिकारी शिक्षा और प्रचार का काम करना होगा। ऐसे बुद्धिजीवियों को लेकर क्रान्तिकारी सांस्कृतिक संगठन और जनवादी अधिकार आन्दोलन संगठित करने होंगे।

भाइयो, बहनो, साथियो,

क्रान्तिकारी बदलाव की राह कठिन और लम्बी हो सकती है, लेकिन यह असम्भव क़तई नहीं है। बस ज़रूरत इस बात की है कि हम मज़बूत इरादे के साथ, कमर कसकर, उठ खड़े हों। स्मृति संकल्प यात्रा के सिपाही देश के तमाम ज़िन्दा लोगों का आह्नान करते हैं! आइये, क्रान्तिकारी नवजागरण की इस नयी मुहिम के भागीदार बनिये!

न हो कुछ भी, सिर्फ़ सपना हो

तो भी हो सकती है शुरुआत

और यह एक शुरुआत ही तो है

कि वहाँ एक सपना है

l

नये संकल्प लें फिर से

नये नारे गढ़ें फिर से

उठो, संग्रामियो! जागो!

नयी शुरुआत करने का समय फिर आ रहा है

कि जीवन को चटख़ गुलनार करने का

समय फिर आ रहा है!

क्रान्तिकारी अभिवादन सहित,

बिगुल मज़दूर दस्ता l नौजवान भारत सभा l दिशा छात्र संगठन

जागृत हो जाओ! एकजुट हो जाओ!! संगठित हो जाओ!!!

हमसफ़र बनने के लिए सम्पर्क करें :

दिल्ली

l बी-100, मुकुन्द विहार, करावल नगर, दिल्ली-110094 फोन : 011-65976788, 9211662298, 9813015767

l रूम नं. 100, हिन्दू कॉलेज हॉस्टल, नॉर्थ कैम्पस, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली-7

फ़ोन : 9999379381, 9999951235, 9911055517, 9250700054

l सी-74, एस.एफ.एस. फ्लैट्स, सेक्टर-19, रोहिणी, दिल्ली-89, फ़ोन : 9910462009, 9999329362, 9213639072

नोएडा/गाजियाबाद l बिगुल मज़दूर दस्ता, जे.जे. कॉलोनी, सेक्टर-9, नोएडा, फ़ोन : 9891993332

l शहीद भगतसिंह लाइब्रेरी, आर-1 कॉमर्शियल, एडवोकेट कॉलोनी, प्रताप विहार, ग़ाज़ियाबाद, फ़ोन : 9891993332

लखनऊ l जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020, फोन : 0522-2786782

गोरखपुर l संस्कृति कुटीर, कल्याणपुर, गोरखपुर, फोन : 0551-2241922, 9415462164

इलाहाबाद l 16/6, वाद्यम्बरी हाउसिंग स्कीम, अल्लाफर, इलाहाबाद, 9415646383

लुधियाना l राजविन्दर: फोन - 09888645663 मऊ l डा. दूध्नाथ, जनगण होम्यो सेवासदन, मर्यादपुर

ईमेल : smriti.sankalp@gmail.com, abhinav_disha@rediffmail.com, disha.du@gmail.com, tapish.m@gmail.com, bigul@rediffmail.com

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