4 Nov 2007

बर्बरता के सामने नतमस्तक होना है या उसे उखाड़ फेंकना है?

बर्बरता के सामने नतमस्तक होना है या उसे उखाड़ फेंकना है?
ये तय करना है हमें...अभी! इसी वक्त!!


हमने टेलीविज़न पर गुजरात नरसंहार के हत्यारों और बलात्कारियों को शान के साथ यह बताते सुना कि उन्होंने निहत्थे-निर्दोष लोगों पर अपने घिनौने और पाशविक पौरुष का प्रदर्शन करके कैसा महसूस किया!! इन बर्बरों ने बच्चों, गर्भवती स्त्रियों, बूढ़ों तक को नहीं बख्शा! एक स्टिंग ऑपरेशन में कैमरे के सामने इन हत्यारों ने जिस तरीक़े से ताल ठोंककर अपने अपराधों का बखान किया उससे किसी भी सभ्य और संवेदनशील व्यक्ति की आत्मा अन्दर तक हिल जायेगी और उन बेगुनाह स्त्रियों, पुरुषों और बच्चों की चीखें उसके कानों में गूँजने लगेंगी। अपने जिन घिनौने अपराधों पर इन हत्यारों ने गर्व प्रकट किया उन्हें सुनते ही उबकाई आने लगती है। सरकार, न्यायालय और प्रशासन ने इन बर्बर नरभक्षियों को पकड़ने और इनके साथ उचित न्याय करने की बजाय उन्हें छुट्टा घूमने के लिए खुला छोड़ रखा है। गुजरात के हिटलर नरेन्द्र मोदी की सरकार से उम्मीद भी क्या की जा सकती है? या फिर कांग्रेस की केन्द्र सरकार से ही क्या उम्मीद की जा सकती है जो 'सेक्युलर-सेक्युलर' चिल्लाते हुए ज़रूरत पड़ने पर खुद भी नर्म साम्प्रदायिक हिन्दू कार्ड खेलने से बाज़ नहीं आती? या संसदीय वामपंथियों से क्या आशा की जाये जो साम्प्रदायिकता-विरोध के नाम पर संसद-विधानसभाओं में ही नपुंसक विमर्श करते रहने के अलावा और कुछ नहीं करते?

गुजरात में जो हुआ था वह कोई साम्प्रदायिक दंगा नहीं था। यह साम्प्रदायिक फासीवादी संघ परिवार द्वारा किया गया सोचा-समझा नरसंहार था। सरकार और प्रशासन इन नरसंहारों को व्यवस्थित रूप से आयोजित करने का काम कर रहे थे। इन नरसंहारों की तुलना पहले के किसी भी साम्प्रदायिक दंगों से नहीं की जा सकती, जिनमें दो सम्प्रदायों के लोग पूँजीपरस्त नेताओं द्वारा उकसावे के कारण धार्मोन्माद में आकर एक-दूसरे को मारते थे। गुजरात में जो हुआ वह मुसलमानों के 'सफाये' की एक सुनियोजित फासीवादी मुहिम थी जिसे पूरी बर्बरता के साथ संघ परिवार ने चलाया। इसकी तुलना सिर्फ नाज़ियों द्वारा जर्मनी में यहूदियों के 'सफाये' मुहिम से ही की जा सकती है। गुजरात के हत्यारे-बलात्कारी हिटलर-मुसोलिनी जैसे फासीवादियों की ही जारज औलादें हैं! गुजरात इनकी आखिरी करतूत नहीं थी। इस तरह के नरसंहार करने का प्रयास ये फासीवादी जहाँ भी सम्भव होगा वहाँ करेंगे। अभी गुजरात जिन्दा जला दिये गये निर्दोष लोगों और बलात्कृत स्त्रियों और बच्चों की लाशों की चिरायंधा से मुक्त नहीं हुआ है! जिनकी आत्मा इसमें घुट नहीं रही है और बग़ावत नहीं कर रही है उनमें, और बाबू बजरंगी सरीखे हत्यारों-बलात्कारियों में कोई ख़ास फ़र्क नहीं रह जायेगा!! गुजरात हमारे विवेक, हमारी आत्मा और हमारी संवेदनशीलता पर लगा एक बदनुमा धब्बा है! जब तक हम साम्प्रदायिक फासीवाद और इन हत्यारों को इतिहास के कचरापेटी के हवाले करने की मुहिम में अपनी पूरी ताक़त के साथ नहीं जुट जाते, तब तक गुजरात के कत्ल कर दिये गये बच्चों, बलात्कृत स्त्रियों और बेगुनाह लोगों की चीखें और कराहें हमारी अन्तरात्मा का पीछा करती रहेंगी और हमसे पूछती रहेंगी क्या एक अरब से ज्यादा आबादी के इस देश के युवाओं और नागरिकों की संवेदना मर चुकी है, उनकी वीरता चुक गयी है, उनका विवेक नपुंसक हो गया है?

गुजरात का नरसंहार जिन नौजवानों की आत्मा को बैचेन नहीं कर देता वे नौजवानी के नाम पर कलंक हैं! उनकी इंसानियत चुक गयी है। शहीदे-आज़म भगतसिंह ने कहा था कि जब गतिरोध की स्थिति लोगों को जकड़ लेती है तो इंसानियत की रूह में हरक़त पैदा करनी होती है नहीं तो प्रतिक्रियावादी ताक़तें जनता को ग़लत राह पर ले जाने में सफल हो जाती हैं। आज शहीदे-आज़म ही हमसे पूछ रहे हैं क्या इस विशाल देश में कुछ लाख नौजवान भी ऐसे नहीं हैं जो इस देश के लोगों की इंसानियत की रूह में हरक़त पैदा करने के लिए कुछ भी कर गुज़रने का तैयार हों?

आपके जवाब के इन्तज़ार में,
नौजवान भारत सभा दिशा छात्र संगठन

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

जिन्हें सिर्फ कुर्सीयां दिखती हो...उन्हें यह चीख सुनाई कैसे देगी....जब सभी ऐसे होगें तो शिकायत कहाँ,किससे करें?

Udan Tashtari said...

अजब बात है.