26 Mar 2008

क्रान्तिकारी नवजागरण के तीन साल

उठो! जागो!! आगे बढ़ो!!!

भगतसिंह की बात सुनो!

नई क्रान्ति की राह चलो!

स्मृति संकल्प यात्रा

(23 मार्च 2005-28 सितम्बर 2008)

नयी प्रेरणा - नया संकल्प - नयी शुरुआत

क्रान्तिकारी नवजागरण के तीन साल

भगतसिंह और उनके साथियों की शहादत की पचहत्तरवीं वर्षगाँठ और जन्मशताब्दी के तीन वर्षों को यादगार बनाओ!

पूँजीवादी लूट और डाकेज़नी के ख़िलाफ़ नयी मज़दूर क्रान्ति का सन्देश हर मज़दूर के घर तक और हर बाग़ी दिल तक पहुँचाओ!!

जागो फिर एक बार!

भगतसिंह का सपना आज भी अधूरा

जागेगा मेहनतकश, करेगा इसे पूरा!

बिगुल मज़दूर दस्ता l नौजवान भारत सभा l दिशा छात्र संगठन


बहनो, भाइयो, हमसफ़र साथियो,

मार्च 2005 से मार्च 2006 तक का समय भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत का पचहत्तारवाँ वर्ष था। यही जनता की सच्ची आज़ादी के हिमायती पत्रकार गणेशशंकर विद्यार्थी की शहादत का भी 75वाँ वर्ष था और 2005 में ही 27 फरवरी से चन्द्रशेखर आज़ाद की शहादत के 75वें वर्ष की और 23 जुलाई से उनके जन्मशताब्दी वर्ष की शुरुआत हुई। 28 सितम्बर 2007 से 28 सितम्बर 2008 तक शहीदेआज़म भगतसिंह के जन्म के सौ साल पूरे होने का वर्ष मनाया जा रहा है। यही नहीं, 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के 150 वर्ष भी मई, 2007 में पूरे हुए। इन्हीं तीन वर्षों को हम लोग इतिहास की अधूूरी और छूटी हुई ज़िम्मेदारियों को याद करने और उन्हें पूरा करने का संकल्प लेने और एक नयी शुरुआत करने का ऐतिहासिक समय बनाना चाहते हैं। 'स्मृति' यानी शहीदों के सपनों और सन्देशों को याद करना, 'संकल्प' यानी उन्हें पूरा करने के लिए क़सम खाना और 'यात्रा' यानी इस बात को हर दबे-कुचले, मज़लूम मेहनतकश और इन्क़लाबी, इन्साफ़पसन्द नौजवान तक पहुँचाने की कोशिश करना। यही है 'स्मृति संकल्प यात्रा', जिसमें शामिल होने के लिए और जिसके मक़सद को पूरा करने के लिए हम आपको न्यौता दे रहे हैं।

भगतसिंह की बहादुरी और क़ुर्बानी के बारे में तो पूरा देश जानता है, लेकिन ज्यादातर पढ़े-लिखे लोग तक यह नहीं जानते कि सिर्फ़ 23 साल की उम्र में फाँसी का फन्दा चूमने वाला यह जाँबाज़ नौजवान एक महान, दूरन्देश विचारक था, जो सिर्फ अंग्रेज़ी हुकूमत और विदेशी पूँजीपतियों की लूट के नहीं बल्कि देशी पूँजीपतियों की हुकूमत और लूट के भी ख़िलाफ़ था। भगतसिंह और उनके नौजवान साथियों के लिए आज़ादी की लड़ाई का मतलब था, एक मज़दूर क्रान्ति के द्वारा मेहनतकश राज की स्थापना जिसमें उत्पादन, राजकाज और समाज के ढाँचे पर आम मेहनतकश जनता काबिज़ हो। अपने क्रान्तिकारी संगठन के घोषणापत्र में, अदालत में दिये गये बयानों में, कई लेखों में और जेल से भेजे गये सन्देशों में भगतसिंह और उनके साथियों ने बार-बार इस बात को साफ़ किया था कि क्रान्तिकारी दस फ़ीसदी थैलीशाहों के लिए नहीं बल्कि नब्बे फ़ीसदी आम मेहनतकश जनता के लिए सच्ची आज़ादी और जनतंत्र हासिल करना चाहते हैं। अपने आखिरी दिनों तक भगतसिंह गहरी पढ़ाई और सोच-विचार के बाद इस नतीजे पर पहुँच चुके थे कि इस मक़सद को चन्द बहादुर लोग हथियार उठाकर हासिल नहीं कर सकते, बल्कि इसके लिए फ़ैक्टरियों और खेतों में खटने वाले करोड़ों मेहनतकशों तक क्रान्ति का सन्देश पहुँचाना होगा और उन्हें संगठित करना होगा। फाँसी की कोठरी से क़ौम के नाम भेजे गये अपने आख़िरी सन्देश में भगतसिंह ने इस बात को बिल्कुल साफ़ कर दिया था।

भगतसिंह और उनके साथियों ने साफ़-साफ़ और बार-बार कहा था कि कांग्रेस आम आबादी की ताक़त का इस्तेमाल करके हुकूमत की बागडोर देशी पूँजीपतियों के हाथों में सौंपना चाहती है और उसकी लड़ाई का अन्त साम्राज्यवाद के साथ समझौते के रूप में ही होगा। उन्होंने निहायत दूरन्देशी के साथ भविष्यवाणी की थी कि महात्मा गाँधीी की नीयत और मंशा चाहे जितनी भलमनसाहत भरी हो, उनकी सोच काल्पनिक आदर्शवादी है, हृदय-परिवर्तन तथा शोषकों-शोषितों में मेल-मिलाप की उनकी शिक्षा अमल में आ ही नहीं सकती और गाँधीीवादी रास्ते से आख़िरकार पूँजीवादी समाज-व्यवस्था ही क़ायम होगी। भगतसिंह और उनके साथियों के ये क्रान्तिकारी विचार चूँकि आज़ाद भारत के हुक्मरानों के लिए भी बेहद ख़तरनाक थे, इसलिए उन्हें तमाम तरह के तीन-तिकड़म करके दबा और छुपा दिया गया। भगतसिंह के कैलेण्डर तो घर-घर में पहुँच गये, लेकिन मुक्ति की राह रोशन करने वाले उनके विचारों को हुक्मरानों और उनके भाड़े के टट्टू बुद्धिजीवियों ने लोगों की नज़रों से ओझल बनाये रखा। स्मृति संकल्प यात्रा के दौरान हमारा यह संकल्प है कि भगतसिंह और उनके साथियों के विचारों को पूरे देश की आम मेहनतकश जनता तक पहुँचाने के लिए हम दिन-रात मेहनत करेंगे, धाुऑंधाार प्रचार कार्य करेंगे और एक-एक मज़दूर के घर तक, हर बहादुर, इन्साफ़पसन्द, स्वाभिमानी बाग़ी नौजवान तक यह सन्देश पहुँचायेंगे कि हमें शहीदों के रास्ते पर चलकर उनका अधाूरा काम पूरा करना है। भगतसिंह और उनके साथियों की चिट्ठियों, बयानों, सन्देशों, लेखों और क्रान्तिकारी दस्तावेज़ों को हम आम लोगों से ही मदद जुटाकर छापते जा रहे हैं और उन्हें ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाते जा रहे हैं। हमारे पास सरकार और पूँजीपतियों की तरह करोड़ों की पूँजी, बड़े-बड़े प्रेस-अख़बार और टी.वी. चैनल नहीं हैं, पर हमारे पास अपना संकल्प है, आम मेहनतकशों के खून-पसीने की कमाई से जुटाये जाने वाले अनमोल सहयोग की पूँजी है और बदलाव के रास्ते और तैयारी की एक दिशा और सोच है। हमारे पास भगतसिंह और क्रान्तिकारी शहीदों की विरासत है और नये मज़दूर इन्क़लाब का सपना है। हमारा रास्ता लम्बा और कठिनाइयों से भरा है। हमें कठिनाइयों, नाकामयाबियों और हारों का सामना तो करना पड़ेगा लेकिन हमारी अन्तिम जीत को भला कौन रोक सकता है?

बहनो, भाइयो, साथियो,

अपनी फाँसी से ठीक तीन दिन पहले भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव ने पंजाब के गवर्नर को लिखे गये पत्र में लिखा था : फ्...हम यह कहना चाहते हैं कि यु( छिड़ा हुआ है और यह यु( तब तक चलता रहेगा, जब तक कि शक्तिशाली व्यक्ति भारतीय जनता और श्रमिकों की आय के साधानों पर अपना एकाधिाकार जमाये रखेंगे। चाहे ऐसे व्यक्ति अंग्रेज़ पूँजीपति, अंग्रेज़ शासक या सर्वथा भारतीय ही हों। उन्होंने आपस में मिलकर एक लूट जारी कर रखी है। अगर शु( भारतीय पूँजीपतियों के द्वारा ही निर्धानों का खून चूसा जा रहा हो तब भी इस स्थिति में कोई अन्तर नहीं पड़ता।य् इस पत्र में हमारे महान शहीदों ने आगे स्पष्ट लिखा था कि तमाम कठिनाइयों, वक्ती हारों और बीच-बीच में रुकावटों के बावजूद आम मेहनतकशों की मुक्ति क़ी लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक कि समाज का पूँजीवादी ढाँचा ख़त्म नहीं हो जाता और मज़दूर क्रान्ति के बाद एक नये युग की शुरुआत नहीं हो जाती।

आज पूरी दुनिया के पूँजीपति समाजवाद की नाकामयाबी पर शोरगुल मचाते हुए अब उसे नामुमकिन बता रहे हैं। लेकिन यह उनकी ख़ामख्याली है। हमें दुनिया के तमाम देशों का इतिहास जानना होगा। वह क्या बताता है? इतिहास में भी, सफल या विजयी होने के पहले, क्रान्तियाँ शुरुआती एक या कुछ राउण्डों में हारती रही हैं। लेकिन आखिरकार जीतकर, क्रान्तियाँ फरानी पड़ चुकी समाज-व्यवस्था को धवस्त करके उसके खण्डहर पर नया सामाजिक ढाँचा खड़ा करने में कामयाब होती रही हैं। आगे भी ऐसा ही होगा। पूँजीवाद और साम्राज्यवाद अमर नहीं हैं। पूँजीवादी ढाँचे के जो लाइलाज रोग हैं, यह जो ज़ुल्म-लूट-ग़ैरबराबरी-ऍंधोरगर्दी की अति है, उसे देखकर यह साफ़ हो जाता है कि भारत की और पूरी दुनिया की मेहनतकश आबादी अब पूँजीवादी अत्याचार को जड़मूल से ख़त्म करने की फ़ैसलाकुन लड़ाई लड़ेगी। इसी में मानवता का भविष्य है। या तो समाजवाद या फिर विनाश मानवता के सामने दो ही रास्ते हैं।

हमारे देश में आज़ादी के बाद के साठ वर्षों का सफ़रनामा हमारे सामने पन्ना-दर-पन्ना खुला पड़ा है। मेहनतकश जनता की सारी उम्मीदें और सारे सपने आज राख हो चुके हैं। सत्तााधाारियों के सारे वायदे छलावे साबित हुए हैं। भारतीय पूँजीपतियों ने समाजवाद के मुखौटे को उतारकर गली के ठगों-बटमारों और समुद्री लुटेरों की तरह लूट मचा रखी है। साथ ही, देश की अकूत प्राकृतिक सम्पदा और मेहनतकशों को लूटने के लिए उन्होंने विदेशी लुटेरों को भी खुली छूट दे रखी है। विदेशी लूट के ख़िलाफ़ भारतीय जनता के बेमिसाल संघर्ष और महान शहीदों की कुर्बानियों की उपलब्धिायों को पूरी तरह से तबाह कर दिया गया है। तमाम चुनावी पूँजीवादी पार्टियों के साथ ही मज़दूरों का रहनुमा होने का दम भरने वाले चुनावबाज़ नकली कम्युनिस्ट भी जनता से ग़द्दारी करके महज़ दुअन्नी-चवन्नी की भीख माँगने की राजनीति की गटरगंगा में गोते लगा रहे हैं और संसदीय सुअरबाड़े में लोट लगा रहे हैं। सरकारें चलाते हुए वे किसी भी पूँजीवादी पार्टी की ही तरह ज़ालिमाना तरीक़े से नयी पूँजीवादी आर्थिक नीतियों को लागू कर रहे हैं। नन्दीग्राम और सिंगुर इसके जीते-जागते सबूत हैं।

किस्सा-कोताह यह कि चुनावी राजनीति, आज की सुधाारवादी ट्रेड यूनियन राजनीति और एनजीओपन्थियों की पैबन्दवादी-रियायतवादी राजनीति ये सभी अलग-अलग रूपों में पूँजीवाद की ही सेवा कर रहे हैं और असली विकल्प से जनता का धयान भरमा-भटका रहे हैं। जाति और धार्म के नाम पर वोट बैंक की राजनीति करने वाली पार्टियाँ मेहनतकश जनता को बाँटकर उनकी जुझारू एकजुटता की राह में गम्भीर अड़चन पैदा कर रही हैं। पूँजीवादी राजनीति के कचरे पर ज़हरीले पौधाों के समान पनपने वाले धाार्मिक कट्टरपन्थी फासिस्ट धाार्मिक जुनून की राजनीति करते हुए नरसंहारों-सामूहिक बलात्कारों आदि के रूप में नंगनाच कर रहे हैं। देश की सारी तरक्क़ी की चमक-दमक और शोरगुल सिर्फ़ मुट्ठीभर ऊपर के लोगों के लिए है। विकास का मतलब है अपार दुखों और ऑंसुओं के सागर में विलासिता की रोशन मीनारों-शीशमहलों से भरे अमीरी के कुछ टाफओं का निर्माण। जहाँ तक मज़दूरों का सवाल है, उनकी 98 फ़ीसदी आबादी असंगठित है जो दिहाड़ी, ठेका या पीसरेट पर खटती है और दस घण्टे से लेकर चौदह घण्टे तक रोज़ाना ग़ुलामों की तरह खटने और हाड़ गलाने के बावजूद नर्क के बाशिन्दों जैसी ही ज़िन्दगी उसे हासिल हो पाती है। लम्बी लड़ाई के बाद काम के घण्टों, न्यूनतम मज़दूरी और अन्य जो भी थोड़ी-बहुत सुविधााएँ मज़दूरों ने हासिल की थीं, वे एक-एक करके उनसे छीनी जा चुकी हैं और ट्रेड यूनियनबाज़ दलाल बस सौदेबाज़ी और ज़ुबानी जमाखर्च करते रह गये हैं। मेहनत-मजूरी करके जीने वालों की आबादी साठ करोड़ के ऊपर पहुँच रही है। मँझोले किसान और मधय वर्ग की आम तबाह-परेशान आबादी पैंतीस करोड़ के आसपास है। चौरासी करोड़ आबादी, सरकारी ऑंकड़ों के हिसाब से, बीस रुपये रोज़ाना से कम पर ज़िन्दगी बिताती है। काम करने योग्य लगभग साठ फ़ीसदी आबादी बेरोज़गारी और र्अ(बेरोजगारी का शिकार है। यानी मुट्ठी भर पूँजीपतियों, व्यापारियों, अफ़सरों, नेताओं, ठेकेदारों, दलालों, सट्टेबाज़ों, डाक्टरों-इंजीनियरों-प्रोफ़ेसरों, अख़बार-टी.वी. के ऊँचे पदों वाले लोगों आदि के लिए ही देश की सारी तरक्क़ी है, सभी शॉपिंग मॉल, आलीशन बंगले, शानदार गाड़ियाँ हैं और ऐद्धयाशी के सारे सामान हैं।

यह पूँजीवादी आज़ादी का वही चेहरा है, जिससे भगतसिंह ने हमें आगाह किया था। इस बर्बर सभ्यता को तबाह कर देने के लिए फ़ैसलाकुन लड़ाई की तैयारी ही एकमात्र रास्ता है और हमारे ज़िन्दा होने का सबूत भी। हालात कठिन हैं, लेकिन हार को जीत में बदलने के लिए हमें एक नयी शुरुआत करनी ही होगी। दूसरा और कोई रास्ता भी क्या है? सफ़र यदि हज़ार मील लम्बा हो तो भी शुरुआत तो एक क़दम उठाकर ही की जाती है। भगतसिंह के विचार एक जलती मशाल की तरह एक नयी शुरुआत की राह दिखा रहे हैं। शहीदों की कुर्बानियों को और उनके सपनों को नये सिरे से याद करने का और नयी क्रान्ति की तैयारी का संकल्प लेने का यही समय है और स्मृति संकल्प यात्रा का यही सन्देश है। भगतसिंह और उनके साथियों का सपना एक जलता हुआ सवाल बनकर हमारी ऑंखों में झाँक रहा है, उनकी विरासत हमें ललकार रही है और भविष्य हमें आवाज़ दे रहा है।

बहनो, भाइयो, साथियो,

सवाल यह है कि इस क्रान्तिकारी नवजागरण की नयी मुहिम की ज़िम्मेदारियाँ क्या हैं? यह एक लम्बी यात्रा है, पर शुरुआत कहाँ से की जाये? हम आपके सामने कोई तैयारशुदा प्रोग्राम नहीं रख रहे हैं। इस छोटे-से परचे में यह मुमक़िन नहीं और हम यह करना भी नहीं चाहते। शुरुआत करने के बारे में हम एक आम दिशा और कुछ बिन्दु रख रहे हैं। अमल के दौरान, मिल-बैठकर हम अपनी साझा समझ बनाते-बढ़ाते जायेंगे।

(1) सबसे पहला काम तो यही है कि हम भगतसिंह और उनके साथियों के लक्ष्य, सपने और विचारों की क्रान्तिकारी विरासत को ख़ुद जाने-समझें और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इन्हें पहुँचायें। इन महान क्रान्तिकारी शहीदों के साहित्य को तथा उनके बारे में लिखी गयी फस्तकों-फस्तिकाओं को बड़ी से बड़ी आबादी तक पहुँचाने के लिए तमाम मेहनतकश साथियों और क्रान्तिकारी नौजवानों को ज्यादा से ज्यादा आर्थिक सहयोग और समय देना होगा, अभियान चलाने होंगे, परचे-पोस्टर निकालने होंगे और यात्राएँ निकालनी होंगी। हमारा लक्ष्य यह होना चाहिए कि पूरे देश के मेहनतकशों और आम लोगों तक शहीदों की वैचारिक विरासत और नयी क्रान्ति का सन्देश पहुँचाया जाये। आप यदि इस परचे के विचारों के क़ायल हैं तो कम से कम इतना तो कीजिये ही कि हर दिन अपने जैसे पाँच लोगों तक यह परचा पहुँचाइये और हर माह अपनी रोटी तक में से कटौती कर कुछ सौ और परचे छापने के लिए, भगतसिंह और उनके साथियों का साहित्य छापने के लिए तथा अन्य क्रान्तिकारी साहित्य छापने के लिए सहयोग कीजिये और ऐसा साहित्य जन-जन तक पहुँचाने की मुहिम में ज्यादा से ज्यादा भागीदारी कीजिये। ऐसा इसलिए, क्योंकि भगतसिंह ने ही कहा था, ''क्रान्ति की तलवार विचारों की सान पर तेज़ होती है।''

(2) यदि भगतसिंह के सपनों को साकार करना है तो मेहनतकशों को सबसे पहले रियायतों की भीख माँगने और चुनावी मदारियों पर भरोसा करने की मानसिकता से छुटकारा पाना होगा। यानी उन्हें पूँजीवादी चुनावी राजनीति और सुधारवादी ट्रेड यूनियनवादी-अर्थवादी राजनीति से पिण्ड छुड़ाना होगा। उन्हें नकली वामपन्थियों की असलियत समझनी होगी। साथ ही मज़दूरों और इन्क़लाबी नौजवानों को यह भी समझना होगा कि थोड़े-से लोग बहादुरी, क़ुर्बानी और हथियारों के भरोसे इन्क़लाब नहीं कर सकते। व्यापक मेहनतकश जनता एकजुट और संगठित होकर जनक्रान्ति के रास्ते से ही पूँजीवादी निज़ाम को तबाह कर सकती है, न कि आतंकवाद के रास्ते। क्रान्तिकारी बदलाव के लिए सबसे पहले मज़दूरों को क्रान्तिकारी अधययन मण्डलों का जाल बिछाना होगा। उन्हें क्रान्ति के विज्ञान और इतिहास का अधययन करना होगा। मज़दूर वर्ग का ऐतिहासिक मिशन है पूँजीवाद को समाप्त करना और इसे अच्छी तरह से समझाने के लिए और मज़दूरों की चेतना को क्रान्तिकारी बनाने के लिए मज़दूरों के सहयोग और ताक़त से एक इन्क़लाबी मज़दूर अख़बार निकाला जाना बेहद ज़रूरी है। 'बिगुल' अख़बार इसी का एक नमूना है, जिसे लाखों-करोड़ों मज़दूरों तक पहुँचाने का लक्ष्य होना चाहिये और इसके लिए हज़ारों मज़दूर स्वयंसेवक कार्यकर्ता तैयार करने होंगे। इसी प्रक्रिया में नयी मज़दूर क्रान्ति को नेतृत्व देने वाली शक्ति के निर्माण के काम को नये सिरे से हाथ में लेना होगा और आगे बढ़ाना होगा।

(3) मज़दूरों को, बेशक एक-एक कारखाने में अपनी आर्थिक माँगों को लेकर लड़ने के लिए, नये सिरे से क्रान्तिकारी ट्रेड यूनियन आन्दोलन खड़ा करना होगा और इस प्रक्रिया में एकजुट और संगठित होकर लड़ने की शुरुआती ट्रेनिंग हासिल करनी होगी। लेकिन इन्हीं लड़ाइयों से वे अपना राजनीतिक लक्ष्य नहीं हासिल कर सकते। उन्हें अपनी राजनीतिक माँगों को लेकर लड़ना होगा। उन्हें एक पूँजीपति मालिक के बजाय पूरे पूँजीपति वर्ग और उसकी सरकार के विरुद्ध लड़ना होगा। इसके लिए ज़रूरी है कि वे काम के घण्टों, ठेका प्रथा के विरोध, रोजगार-सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा-आवास के अधिकार आदि सवालों पर अलग-अलग पेशों वाले और अलग-अलग कारख़ानों में खटने वाले मज़दूरों को एकजुट करें। इसके लिए कारख़ाने के बजाय इलाकाई आधाार पर ट्रेड यूनियनें नये सिरे से संगठित करनी होंगी। यह लम्बा काम है पर इसे हाथ में लेना ही होगा। छोटे-छोटे राजनीतिक अधिकारों-माँगों की लड़ाइयों की लड़ियाँ पिरोते हुए हमें अन्तिम राजनीतिक लक्ष्य के लिए संघर्ष की ज़मीन तैयार करनी होगी। मज़दूर वर्ग लड़ते हुए ही सीखेगा और यह समझेगा कि समाजवाद ही एकमात्र विकल्प और उसका लक्ष्य है तथा यह भी सीखेगा कि उसे हासिल करने का रास्ता क्या है? कारख़ानों के मज़दूरों के साथ ही गाँव के ग़रीबों के लिए भी यही अकेला रास्ता है।

(4) मज़दूरों के नौजवान सपूतों को, नौजवान मज़दूरों को और मधय वर्ग के क्रान्तिकारी नौजवानों को चुनावी मदारियों से पीछा छुड़ाकर, अपने ऐसे क्रान्तिकारी नौजवान संगठन बनाने होंगे जो मुफ्त और समान शिक्षा और सबको रोजगार के बुनियादी अधिकार के लिए संघर्ष को क़दम-ब-क़दम संगठित करते हुए आगे बढ़ायें तथा मेहनतकश जनता के हमक़दम और उसके संघर्षों के साझीदार बनें। ऐसे क्रान्तिकारी नौजवान संगठनों को समाज को दिमाग़ी ग़ुलामी से छुटकारा दिलाने के लिए सामाजिक बुराइयों, जात-पाँत आदि कुरीतियों, धार्मिक कट्टरपन, अन्धाविश्वास आदि के ख़िलाफ़ ज़बर्दस्त जुझारू और साहसी मुहिम छेड़नी होगी। उन्हें एक ठोस क्रान्तिकारी कार्यक्रम बनाते हुए भगतसिंह और उनके साथियों द्वारा बनायी गयी 'नौजवान भारत सभा' से सीखना होगा और पूरी दुनिया के क्रान्तिकारी नौजवान आन्दोलनों से सीखना होगा। इस दिशा में पहले क़दम के तौर पर नौजवानों को क्रान्तिकारी साहित्य के फस्तकालय और अधययन मण्डल बनाने होंगे, सांस्कृतिक टोलियाँ, प्रचार दस्ते, खेलकूद क्लब, स्वयंसेवक कोर आदि बनाने होंगे तथा अपने आसपास के माहौल में हर बुराई, हर अन्याय के विरुद्ध और आम जनता की ज़रूरी माँगों को लेकर आन्दोलन संगठित करने होंगे। ऐसे किसी नौजवान संगठन के लिए हम 'नौजवान भारत सभा' नाम का ही प्रस्ताव रखते हैं जो भगतसिंह और उनके साथियों द्वारा स्थापित नौजवान संगठन का नाम था। इस नवगठित नौजवान भारत सभा ने अपना एक मसौदा कार्यक्रम भी विचार के लिए प्रस्तुत किया है।

(5) इन्हीं कामों को विश्वविद्यालयों-कॉलेजों-स्कूलों में अंजाम देने के लिए क्रान्तिकारी छात्र संगठन खड़े करने होंगे। शिक्षा और रोज़गार के दूरगामी सवालों पर लम्बी लड़ाई की तैयारी करते हुए क्रान्तिकारी छात्र संगठन साम्राज्यवाद और पूँजीवाद के विरुद्ध नयी समाजवादी क्रान्ति की वैचारिक तैयारी और क्रान्तिकारी प्रचार के काम पर विशेष ज़ोर देगा। वह व्यापक छात्र आबादी को क्रान्ति का सक्रिय योद्धा बनाने का काम करेगा। वह छात्र राजनीति को एम.एल.ए.-एम.पी. का भरती केन्द्र एवं प्रशिक्षण केन्द्र के बजाय क्रान्तिकारी भरती एवं प्रशिक्षण केन्द्र बनाने की कोशिश करेगा। वह पूँजीवादी शिक्षा और संस्कृति के विरुद्ध छात्रों-युवाओं की चेतना तैयार करेगा, छात्रों की टोलियाँ बनाकर मज़दूरों के बीच क्रान्तिकारी प्रचार, शिक्षा और आन्दोलन की कार्रवाइयों में भागीदारी के कार्यक्रम बनायेगा और उन्हें अमल में लायेगा। इसी सोच के साथ आज 'दिशा छात्र संगठन' काम कर रहा है। लेकिन यह तो महज़ एक छोटी-सी शुरुआत है। इसे अभी बहुत आगे जाना है।

(6) पूरी दुनिया का इतिहास इस बात का गवाह है और भगतसिंह और उनके साथियों का भी यही मानना था कि आधीी आबादी, यानी कि औरतों की जागृति और भागीदारी के बिना न तो कोई सामाजिक क्रान्ति सफ़ल हो सकती है, न ही सामाजिक क्रान्ति में भागीदारी के बिना स्त्रियाँ अपनी ग़ुलामी से मुक्त हो सकती हैं। जो भगतसिंह के विचारों को मानते हैं, उन्हें स्त्रियों को बराबरी का दर्ज़ा देना होगा। मज़दूरों, नौजवानों और छात्रों के आन्दोलनों में स्त्रियों की भागीदारी बढ़ानी होगी। इसके साथ ही मज़दूर स्त्रियों और अन्य तबकों की स्त्रियों के स्वतन्त्र क्रान्तिकारी संगठन भी खड़े करने होंगे। इसकी शुरुआत अपने घरों से, अपनी माँ-बहनों-बेटियों-पत्नियों से करनी होगी। उन्हें पैरों की जूती समझना बन्द करना होगा। सामाजिक कुरीतियों का सबसे ज्यादा कहर स्त्रियाँ ही झेलती हैं। हमें इन कुरीतियों के खिलाफ़ समझौताहीन लड़ाई भी चलानी होगी।

(7) खाते-पीते कलम के टट्टू अपनी सुख-सुविधाा के लिए पूँजीवादी निज़ाम की चाकरी करते हैं। लेकिन जो बुद्धिजीवी प्रगतिशील विचार रखते हैं, वे आम मेहनतकश जनता के जीवन और संघर्षों से जुड़ने की दिल से कोशिश करते हैं। ऐसे बुद्धिजीवियों को भी अपने क्रान्तिकारी संगठन बनाने होंगे, जनता के अधिकारों के लिए लड़ना होगा और जनता के बीच क्रान्तिकारी शिक्षा और प्रचार का काम करना होगा। ऐसे बुद्धिजीवियों को लेकर क्रान्तिकारी सांस्कृतिक संगठन और जनवादी अधिकार आन्दोलन संगठित करने होंगे।

भाइयो, बहनो, साथियो,

क्रान्तिकारी बदलाव की राह कठिन और लम्बी हो सकती है, लेकिन यह असम्भव क़तई नहीं है। बस ज़रूरत इस बात की है कि हम मज़बूत इरादे के साथ, कमर कसकर, उठ खड़े हों। स्मृति संकल्प यात्रा के सिपाही देश के तमाम ज़िन्दा लोगों का आह्नान करते हैं! आइये, क्रान्तिकारी नवजागरण की इस नयी मुहिम के भागीदार बनिये!

न हो कुछ भी, सिर्फ़ सपना हो

तो भी हो सकती है शुरुआत

और यह एक शुरुआत ही तो है

कि वहाँ एक सपना है

l

नये संकल्प लें फिर से

नये नारे गढ़ें फिर से

उठो, संग्रामियो! जागो!

नयी शुरुआत करने का समय फिर आ रहा है

कि जीवन को चटख़ गुलनार करने का

समय फिर आ रहा है!

क्रान्तिकारी अभिवादन सहित,

बिगुल मज़दूर दस्ता l नौजवान भारत सभा l दिशा छात्र संगठन

जागृत हो जाओ! एकजुट हो जाओ!! संगठित हो जाओ!!!

हमसफ़र बनने के लिए सम्पर्क करें :

दिल्ली

l बी-100, मुकुन्द विहार, करावल नगर, दिल्ली-110094 फोन : 011-65976788, 9211662298, 9813015767

l रूम नं. 100, हिन्दू कॉलेज हॉस्टल, नॉर्थ कैम्पस, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली-7

फ़ोन : 9999379381, 9999951235, 9911055517, 9250700054

l सी-74, एस.एफ.एस. फ्लैट्स, सेक्टर-19, रोहिणी, दिल्ली-89, फ़ोन : 9910462009, 9999329362, 9213639072

नोएडा/गाजियाबाद l बिगुल मज़दूर दस्ता, जे.जे. कॉलोनी, सेक्टर-9, नोएडा, फ़ोन : 9891993332

l शहीद भगतसिंह लाइब्रेरी, आर-1 कॉमर्शियल, एडवोकेट कॉलोनी, प्रताप विहार, ग़ाज़ियाबाद, फ़ोन : 9891993332

लखनऊ l जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020, फोन : 0522-2786782

गोरखपुर l संस्कृति कुटीर, कल्याणपुर, गोरखपुर, फोन : 0551-2241922, 9415462164

इलाहाबाद l 16/6, वाद्यम्बरी हाउसिंग स्कीम, अल्लाफर, इलाहाबाद, 9415646383

लुधियाना l राजविन्दर: फोन - 09888645663 मऊ l डा. दूध्नाथ, जनगण होम्यो सेवासदन, मर्यादपुर

ईमेल : smriti.sankalp@gmail.com, abhinav_disha@rediffmail.com, disha.du@gmail.com, tapish.m@gmail.com, bigul@rediffmail.com

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