19 Sept 2008

भगतसिंह ने कहा... 'ग़ुलामी की जंजीरें काटने के लिए संगठनबद्ध हो जाओ...'

उठो, अपनी शक्ति को पहचानो। संगठनबद्ध हो जाओ। असल में स्‍वयं कोशिशें किये बिना कुछ भी न मिल सकेगा। ...स्‍वतन्‍त्रता के लिए स्‍वाधीनता चाहने वालों को स्‍वयं यत्‍न करना चाहिए। इन्‍सान की धीरे-धीरे कुछ ऐसी आदतें हो गयी हैं कि वह अपने लिए तो अधिक अधिकार चाहता है, लेकिन जो उनके मातहत हैं उन्‍हें वह अपनी जूती के नीचे ही दबाये रखता चाहता है। कहावत है, 'लातों के भूत बातों से नहीं मानतेद्ध। अर्थात संगठनबद्ध हो अपने पैरों पर खड़े होकर पूरे समाज को चुनौती दे दो। तब देखना, कोई भी तुम्‍हें तुम्‍हारे अधिकार देने से इन्‍कार करने की ज़ुर्रत न कर सकेगाा तुम दूसरों की ख़ुराक़ मत बनो। दूसरों के मुँह की ओर न ताको। लेकिन ध्‍यान रहे, नौकरशाही के झॉंसे में मत फँसना। यह तुम्‍हारी कोई सहायता नहीं करना चाहती, बल्कि तुम्‍हें अपना मोहरा बनाना चाहती है। यही पूँजीवादी नौकरशाही तुम्‍हारी ग़ुलामी और ग़रीबी का असली कारण है। इसलिए तुम उसके साथ कभी न मिलना। उसकी चालों से बचना। तब सबकुछ ठीक हो जायेगा। तुम असली सर्वहारा हो...संगठनबद्ध हो जाओ। तुम्‍हारी कुछ हानि न होगी। बस ग़लामी की जंजीरें कट जायेंगी। उठो, और वर्तमान व्‍यवस्‍था के विरुद्ध बग़ावत खड़ी कर दो। धीरे-धीरे होने वाले सुधारों से कुछ नहीं बन सकेगा। सामाजिक आन्‍दोलन से क्रान्ति पैदा कर दो तथा राजनीतिक और आर्थिक क्रान्ति के लिए कमर कस लो। तुम ही तो देश का मुख्‍य आधार हो, वास्‍तविक शक्ति हो, सोये हुए! उठो, और बग़ावत खड़ी कर दो!

-- भगतसिंह (अछूत समस्‍या पर एक लेख से)

2 comments:

Anonymous said...

Bhagat Singh ke lekhan ko saamne laane ka prayaas to accha hein lekin mujhe lagta hain ise blog par lokpriy karne ke liye kuch aur karna hoga. Apna sujhav email par bhej raha hoon.

Udan Tashtari said...

बहुत आभार पढ़वाने का.