15 Sept 2008

देश को एक आमूल परविर्तन की आवश्‍यकता है...

सभ्‍यता का यह प्रासाद यदि समय रहते संभाला न गया तो शीघ्र ही चरमराकर बैठ जायेगा। देश को एक आमूल परिवर्तन की आवश्‍यकता है। और जो लोग इस बात को महसूस करते हैं उनका कर्तव्‍य है कि साम्‍यवादी सिद्धान्‍तों पर समाज का पुनर्निर्माण करें। जब तक यह नहीं किया जाता और मनुष्‍य द्वारा मनुष्‍य का तथा एक राष्‍ट्र द्वारा दूसरे राष्‍ट्र का शोषण, जिसे साम्राज्‍यवाद कहते हैं, समाप्‍त नहीं कर दिया जाता तबतक मानवता को उसके क्‍लेशों से छुटकारा मिलना असम्‍भव है, और तबतक युद्धों को समाप्‍त कर विश्‍व-शान्ति के युग का प्रादुर्भाव करने की सारी बातें महज ढोंग के अतिरिक्‍त और कुछ भी नहीं हैं। क्रान्ति से हमारा मतलब अन्‍ततोगत्‍वा एक ऐसी समाज-व्‍यवस्‍था की स्‍थापना से है जो इस प्रकार के संकटों से बरी होगी और जिसमें सर्वहारा वर्ग का आधिपत्‍य सर्वमान्‍य होगा। और जिसके फलस्‍वरूप स्‍थापित होने वाला विश्‍व-संघ पीडि़त मानवता को पूँजीवाद के बन्‍धनों से और साम्राज्‍यवादी युद्ध की तबाही से छुटकारा दिलाने में समर्थ हो सकेगा।
-- भगतसिंह ('बम काण्‍ड पर सेशन कोर्ट में बयान' से)

1 comment:

दिनेशराय द्विवेदी said...

भगत सिंह का यह वक्तव्य आज भी उतना ही सही है।