16 Sept 2008

क्रान्ति से हमारा अभिप्राय...

क्रान्ति से हमारा अभिप्राय है - अन्‍याय पर आधारित मौजूदा समाज-व्‍यवस्‍था में आमूल परिवर्तन।
समाज का मुख्‍य अंग होते हुए भी आज मज़दूरों को उनके प्राथमिक अधिकार से वंचित रखा जाता है और उनकी गाढ़ी कमाई का सारा धन पूँजीपति हड़प जाते हैं। दूसरों के अन्‍नदाता किसान आज अपने परिवार सहित दाने-दाने के लिए मुहताज हैं। दुनिया भर के बाज़ारों को कपड़ा मुहैया करने वाला बुनकर अपने तथा अपने बच्‍चों के तन ढँकने-भर को भी कपड़ा नहीं पा रहा है। सुन्‍दर महलों का निर्माण करने वाले राजगीर, लोहार तथा बढ़ई स्‍वयं गन्‍दे बाड़ों में रहकर ही अपनी जीवन-लीला समाप्‍त कर जाते हैं। इसके विपरीत समाज के जोंक शोषक पूँजीपति ज़रा-ज़रा-सी बात के लिए लाखों का वारा-न्‍यारा कर देते हैं।
यह भयानक असमानता और ज़बरदस्‍ती लादा गया भेदभाव दुनिया को एक बहुत भयानक उथल-पुथल की ओर लिए जा रहा है। यह स्थिति अधिक दिनों तक क़ायम नहीं रह सकती। स्‍पष्‍ट है कि आज का धनिक समाज एक भयानक ज्‍वालामुखी के मुख पर बैठकर रंगरेलियाँ मना रहा है और शोषकों के मासूम बच्‍चे तथा करोड़ों शोषित लोग एक भयानक खड्ड की कगार पर चल रहे हैं।
--- भगतसिंह ('बम काण्‍ड पर सेशन कोर्ट में बयान' से)

1 comment:

दिनेशराय द्विवेदी said...

ये सब बातें आज भी उतनी ही सही हैं।